CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Monday, February 13, 2017

कालेधन के इंद्रजाल के बाद क्या

कालेधन के इंद्रजाल के बाद क्या

कम्बल ओढ़ कर घी खाने के बाद शायद रेन कोट पहन कर नहाने वाला मुहावरा सबसे लोकप्रिय हुआ है। यह मुहावरा हमारे प्रधानमंत्री जी ने राज्य सभा में पिछले हफ्ते अपने भाषण  के दौरान लोगों को दिया। इसके बाद वे नोटबंदी और कालेधन पर बड़ी बड़ी बातें करते रह। अपनी पीठ खुद ठोकते रहे ‘सूरमा भोपाली’ की तरह , हां भाई नई तो ! उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था से 85 प्रतिशत नोट हटा लेने के अपने नाटकीय निर्णय को बड़ी तफसील से बयान किया। उन्होंने ऐसा आर्थिक कदम उठाया कि दुनया भर के अर्थशास्त्री अब उसके विश्लेषण में लगे हैं। उन्होंने अपने विशेष अंदाज में सीना चौड़ा करते हुये कहा कि अब तक ीकिसी नेता ने ऐसी हिम्मत नहीं दिखायी थी। उन्होंने कहा कि जनता इसे बहुत ज्यादा सराह रही है तथा इस कदम को भाहरी समर्थन हासिल है। उन्होंने कहा कि एक ऐसे मुल्क में जशं एक मामूली बात पर दंगा हो जाता है वहां इस फैसले पर लोगों में रोष तक नहीं दिखा। लेकिन कहते हैं कि ‘नाई नाई कितने बाल, तो जवाब होता है कि , हुजूर मूंड़ देता हूं गिन लिजीये।’ अब से एक महीने से कम समय रह गया है उत्रर प्रदेश , उत्तराखंड, पंजाब , मणिपुर और गोवा के चुनावों के नतीजे आने में। मोदी जी खुद देख लेंगे कि नोटबंदी​ को कितना समर्थन हासिल था। ये चुनाव एक तरह से मोदी जी के नोटबंदी के फैसले पर जनमत संग्रह है।

खैर , क्या होगा यह तो आने वाला समय बतायेगा। जहां तक नोटबंदी का सवाल है शुरूआती दिनों में गरीबों ने इसका समर्थन जरूर किया था। यह समझ नहीं एक तरह से ईर्ष्या थी। उनका कहना था कि अमीर भी बैंकों के सामने लाइन में खड़े होकर रुपये के लिये चिंतित दिख रहे हैं। उन्हें उम्मीद थी कि कालाधन समाप्त हो जायेगा और और उनके जनधन खाते में ‘कुछ’ आयेगा। अब कतारें खत्म हो गयीं,नवम्बर वाली वह चिंता भरी अफरा तफरी भी मिट गयी। इसके बाद भु आप में से बहुत लोगों ने देखा होगा कि उस समय क्या हुआ। कई लोगों पीड़ा झेली होगी अपने प्रिय लोगों के इलाज के लिये भुगतान नहीं कर पाने की मजबूरी की। किसानों ने खाद बीज के लिये रुपये के अभाव की पीड़ा भोगी होगी। छोटे व्यापाहरी सबकुछ गवां बैठे होंगे। जो हुआ सो हुआ। लेकिन प्रधानमंत्री जी को यह दिखा देने का समय है कि वे सचमुच आ​र्थिक और प्रशासनिक सुधार करना चाहते हैं। क्योंकि नोटबंदी के अलावा जो भी उन्होंने किया वह केवल दिखाऊ था। अगर बे अपना पद संभालने के 100 दिनों के भीतर ऐसा कदम उठाये होते तो अब तक बहुत कुछ सुधर गया होता। इस तरह का ‘मैजिक ट्रिक’ नही अपनाना पड़ता। कल से ठीक एक महीने बाद यानी 15 मार्च को उनके शासन काल के 1000 दिन पूरे हो जायेंगे। अच्छे दिन की उम्मीद में 125 करोड़ लोगों के टकटकी लगाये 1000 दिन गुजर जायेंगे। उन्होंने जो किया वह बेशक बेमिसाल था। लेकिन सच कहें तो यह कदम इतनी अयोग्यता पूर्वक उठाया गया कि इसका सारा लाभ ही खत्म हो गया। आर्थिक सुधार से जुड़े इस कदम को देख कर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि सरकार के ऐसे सुधारों से पहले प्रशासनिक सुधार जरूरी है। एक् टऐसी प्रशासनिक व्यवस्था जिसकी कमान राजनीतिक आकाओं के हाथ में तो उसमें कैसे साख और निष्पक्षता पैदा लेगी। लालफीताशाही वैसे ही बदनाम है चीजो को लटकाने में और उसपर सियासी बॉस किसी भी योजना का बंटाधार करने के लिये पर्याप्त हैं। पहले तो इसे खत्म करना होगा। कुछ प्रशासनिक बंदोबस्त, जिसमें नियम और काम का तौर तरीका शामिल हैं , एकदम भारतीय हैं। इन्हें खत्म किये बिना कुछ नहीं होगा। सरकारी कार्यालयों में जाएं और देखें कि यहां बैठे हुक्काम किस तरह से काम करते हैं। सरकारें बदल जातीं हैं पर काम का माइंड सेट नहीं बदलता। मसलन , चंद अपवादों को छोड़कर, भारत का हर अफसर अक्सर साहब ‘मोड’ और मंत्री ‘राजा मोड’ में रहता है और उसकी मंशा होती है कि वह जो कुछ कहे या करे उसे समर्थन दिया जाय।  क्या मोदी जी इसे बदल सकते हैं? क्या वे इन अफसरों- नेताओं में यह भावना पैदा कर सकते हैं कि वे खुद को जनता का सेवक मानें शासक नहीं। इसे खत्म करने के बाद क्या वे सरकारी खर्चों में कटौती कर सकते हैं? कुछ दिन पहले विख्यात अर्थ शास्त्री विवेक देबराय ने कहा था कि ‘सरकार के 55 मंत्रालयों में से 31 को खत्म कर देना चाहिये। खत्म किये जाने वाले मंत्रालयों में पशुपालन से लेकर पर्यटन तक है तथा जिनका पुनर्गठन किया चाहिये वे र्है, व्यापार, वाणिज्य, उद्योग, उपभोक्तग् मामले, ढांचा विकास, सुरक्षा, विधि और कारपोरेट मामले, विदेश , गृह, सामाजिक विकास, ऊर्जा तथा विज्ञान। ’ डा. देबराय के अनुसार अगर इनका पुनर्गठन हो तो इससे साल में 1 लाख 50 हजार हरोड़ रुपयों की बचत होगी। इसे कहते हैं सुधार। मोदी जी जब प्रदानमंत्री बने थे तो इसकी उम्मीद की गयी थी। यह शर्म की बात है कि यह नहीं हुआ। लेकिन अभी भी समय है। अगर 21 सदी के अनुरूप सुधार नहीं भी कर पा रहे तो 20वीं सदी के स्तर पर ही कुछ कर दें। अभी बी बहुत कुछ हो सकते है। मोदी जी के आलोचक ‘अच्छे दिन ’ वाले जुमले का मजाक उड़ाते हैं। अगर वे सुधार करते हैं तो बेशक कुछ अच्छे दिन तो आ ही सकते हैं। जनता के बीच से भारी संख्या में रातोरात नोट ‘गायब’ कर देने वाले ‘इंद्रजाली कारनामें’ आतंक तो पैदा कर सकते हैं लेकिन सुधार नहीं कर सकते। आपने गौर किया होगा कि प्रधानमंत्री के इस ‘इंद्रजाली कारनामे’ से टैक्स आतंकवाद का जिन्न पैदा ले चुका है। यह समय है कि प्रधानमंत्री कालेधन का कालाजादू दिखाना बंद करें।

0 comments: