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Thursday, February 9, 2017

भारत के लिए खतरा

भारत के लिए खतरा

जब सऊदी अरब ने घोषणा की कि आतंकवाद से मुकाबले के लिए उसने दुनिया भर के इस्लामी समूहों को एक कर रहा है और उस संगठन का प्रमुख राहील शरीफ को बनाया गया है , तो लोग उसकी बात पर हंसने लगे. शरीफ पाकिस्तानी सेना के अवकाश प्राप्त प्रमुख हैं. क्योंकि खुद सऊदी अरब सीरिया में कई आतंकवादी समूहों को मदद कर रहा है. पकिस्तान तो खैर आतंकिओं को पैदा करने और उनका निर्यात करने वाला सबसे बड़ा मुल्क है. भारत के नज़रिए से इस पर हंसने वाली कोई बात नहीं है. इस आतंकविरोधी संघ के सदस्य के तौर पर मिस्र , कतर , संयुक्त अरब अमीरात, तुर्की, मलयेशिया , कई अफ्रीकी देश और यकीनन पाकिस्तान सहित 39 देशों ने हस्ताक्षर किये हैं. अब इस मुकाम पर यह देखना ज़रूरी है कि सऊदी अरब क्यों ऐसा समूह गठित कर रहा है और पकिस्तान के एक रिटायर्ड जनरल को क्यों इसका प्रमुख बना रहा है. इसका पहला कारण है कि सऊदी शेख अपने लोगों पर भरोसा नहीं करते. साथ ही वहाँ शाही परिवार को जन समर्थन हासिल नहीं है , खास कर शिया लोगों  के लिए तो वह परिवार जिगर में फाँस की तरह है.  दूसरी बात कि सऊदी अरब अपनी भीतरी और सीमाई जंग के लिए बाहर  से मदद लेना चाहता है. बहुराष्ट्रीय भृत्य योद्धा या कहें कि भाड़े के हत्यारे ऐसे हों जो अपने आका को आँख ना दिखा सकें. इई जगह इस्लामाबाद उपयोगी है. पाकिस्तानी फौजी 1960  से सऊदी अरब में रह रहे हैं और स्थानीय सियासत से बिलकुल निस्पृह रह कर वे अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं. यही नहीं 1980 से पाकिस्तानी वायु सेना के पायलटों का एक जत्था भी यहाँ कम कर रहा है. ऐसी बात नहीं कि वहाँ प्रशिक्षित पायलटों का अभाव है , बल्कि इसलिए कि वे डरपोक है. चूँकि वे शाही खानदान से हैं तो कड़ी मेहनत  नहीं करना चाहते है. इस कारण से भी पकिस्तान पर उसे  मुनहसर रहना पड़ता है. ऐसी पृष्ठभूमि में शरीफ की नियुक्ति मानीखेज है. वैसे भी शरीफ पहले पाकिस्तानी जनरल हैं जिसने सेवाकाल बढाने की गुजारिश नहीं की . शरीफ पाकिस्तानी तालिबानों की मुश्कें कसने के लिए विख्यात हैं. अतएव उन्हें आतंकियों से निपटने का तजुर्बा है.

इस संगठन का भारत पर असर का जहां तक सवाल है तो शरीफ घोषित तौर पर भारत से नफरत करते हैं. उनके भाई और चाचा भारत से 1965 और 1971 के जंग में मारे गए हैं. वे सदस्य देशों को भरद के विरोध में काम करने के लिए दबाव  डालेंगे. हालांकि वक्त बड़क चुका है और पकिस्तान को दुनिया में नापसंद किया जाने लगा है. हालांकि यह विश्वसनीय नहीं है कि इस्लामी देश भारत के खिलाफ पकिस्तान की पीठ ठोकेंगे. यह बात दूसरी है कि भारत अरब विश्व के खिलाफ इस्राईल की मदद करता रहा है. 1971 की जंग में तीन इस्लामी देश- सीरिया , सऊदी अरब और ट्युनिसिया- ने पकिस्तान का समर्थन किया था खास कर पूर्वी पकिस्तान ( अब बंगलादेश) में पाक ने जो किया था उसका खुल कर समर्थन किया था और कहा था कि यह पकिस्तान का अन्दरुनी मामला है  और भारत इसमें दखल ना दे. वस्तुतः उन्होंने भारत को हमलावर तक कह दिया था. “ इंडियाज प्रो अरब पालिसी “ में  आर ई वार्ड ने लिखा है कि “ राष्ट्र संघ के संकल्प 2793 के अनुसार अफगानिस्तान और ओमान को छोड़ 104 मुस्लिम मुल्कों ने पकिस्तान का समर्थन किया था.”  वार्ड ने कई चकरा देने वाले आंकड़े दिए हैं. वार्ड के मुताबिक यदि सुरक्षा परिषद् में प्रस्तुत 4 प्रस्तावों को 1948 – 65 के मध्य मतदान के लिए प्रस्तुत किये गए कुल 19  प्रस्तावों में जोड़ दिया जाय तो मध्य पूइरवा देशों ने 71 प्रतिशत मामलों में पाक का समर्थन किया है. तत्कालीन पूर्वी पकिस्तान में 30 लाख लोगो की पाकिस्तानी फौजिओं द्वारा हत्या को लेकर अरब विश्व में कोई अफ़सोस नहीं था. लीबिया के राष्ट्रपति गद्दाफी ने तो भारत के हमले को इस्लाम पर हमले की संज्ञा दी  थी. इस दौरान  अबू धाबी , कुवैत और सऊदी अरब ने पकिस्तान को 20 करोड़ डालर की मदद दी  थी.

अब आतंक विरोधी संघ के प्रमुख के तौर शरीफ से उम्मीद की जाती है कि वे “ बुरे आतंकियों” के मुकाबले “ अच्छे आतंकियों” की मदद करेंगे. फिलहाल सऊदी अराब और कतर आई एस आई एस को सीरिया के खिलाफ जंग के लिए हथियार वगैरह देते हैं. अब उन तक शरीफ की पहुँच हो जायेगी और वे आई एस आई एस को भारत के विरुद्ध ललकार देंगे. अरब में पकिस्तानिओं को नापसंद करते हैं और कई देशों में उनके प्रवेश पर रोक है. शरीफ की निओयुक्ति इस बात का सबूत है की नफरत केवल दिखावा है. पकिस्तान को अलग थलग करने का प्रयास पूरी तरह सफल नहीं हो पाया है. शरीफ की नियुक्ति भारत के लिए एक तरह से चेतावनी है. और भविष्य में युद्ध होता है तो भारत को सतर्क रहना होगा.  

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