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Monday, April 24, 2017

जो चुका रहे हैं जंग की कीमत

जो चुका रहे हैं जंग की कीमत

यहां तक कि जो कट्टर भारत समर्थक हैं वे भी मानने लगे हैं कि इस बार कश्मीर में बहुत कम मतदान इस बात का गणितीय प्रमाण है कि वहां वर्तमान राजनीतिक शैली प्रभावहीन हो चुकी है। अब यहां सवाल उठता है कि वह क्या है जिसने इन कुछ वर्षों में इतना बदल कर रख दिया या क्यों मुख्यधारा की राजनीति में जन- गण का भरोसा खत्म हो गया?या, फिर कश्मीर में रोज इसके मौके घटते जा रहे हैं, आखिर क्यों? जो भारत ओर बारतीयता के कट्टर समथर्थक हैं उनका मानना है कि कुछ दिन पहले बडगाम जिले में एक खूनी उपचहुनाव हुआ और असर श्रीनगर में दिखा। वहां की सड़कें सूनीं थीं और अस पर बम टपक रहे थे। जो लोग अब तक देश के नाम से लम्बी लम्बी बातें कर रहे थे पर उनमें इमानदारयी तथा संवेदनशीलता कायम थी वे खुद को कुंठित महसूस कर रहे थे क्योंकि जन्होंने वहां के लोगों से बातें की है ओर जो नस्वीरें मीडिया के जरिये देखने को मिली हैं उन में कश्मीरी आवाम की आंखों निराशा स्पष्ट दिख रही थी। ये सब क्या हो रहा है? उपचुनाव के कुछ पहले का दृश्य याद करें। उपचुनाव से पहले , फकत तीन दिन पहले , सुरक्षा बलों ने बडगहाम में फायरिंग की थी और इसमें तीन लोग मरे थे। इसे लो कर लोग शोकमग्न थे ओर क्रोधित भी। 9 अप्रैल को वहां मतदान हुआ और महज 7.4 प्रतिशत मतदान हुआ और जिस दिन पुनर्मतदान हुआ उस दिन यह अनुपात केवल 2 प्रतिशत पर आ गया।  इन दिनों कश्मीर में राजनीति से दुराव को जानने के लिये वहां जानने की जरूरत नहीं है। टी वी पर कश्मीरी नेताओं को देखें, उनकी शक्ल देखें , आंखों को देखें और उनकी बॉडी लैंग्वेज देखें तथा सब कुछ समझ में आा जायेगा। लोग इसे दिल्ली की दबंगई का नतीजा बता रहे हैं। साफ दिख रहा है कि दक्षिणपंथी मुख्यधारा की राजनी​ति भारत पर असर डाल रही है, देश के विबिनन बागों में पढ़ रहे कश्मीरी छात्रों पर हमले हो रहे हैं खास कर राजषस्थान ओर अत्तरप्रदेश में और कश्मीर में नफरत पैदा हो रही है। बात यहां तक बड़ गयी है कि नयी दिल्ली में सांेमवार को आयोजित नीति आयोग की बैठक में उपस्थित कश्मीर की मुख्यमंत्री मुफ्ती महबूबा ने अन्य मुख्य मंत्रियों से अपील की है कि वे इस मामले को देख्घें तथा अपने राज्यों में छात्रों पर हमले रोकें। इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बी उपस्थित थे। महबूबा ने बैठक में यह कहा कि ये बच्चे पढ़ने के लिये घर बार छोड़ कर आये हैं उनहें शांतिपूर्ण माहौल उपलब्ध करायें ताकि वे पढ़ाई में ध्यान लगा सकेंनिति आयोग की प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक प्रधानमं1ा नरेंद्र मोदी ने बी महबूबा की बातों का समथर्थन करते हुये मुख्यमंत्रियों को निर्देण दिया है। कि वे कश्मीरियों की सुरक्षा पर ध्यान दें। यहां यह बता देना प्रासंगिक हसोगा कि हाल में राजस्थान के मेवाड़ में दो कश्मीरी छात्रों की पिटाई हुई, पिलानी में एक शोधार्थी को धमकियां दी गयीं और मेरठ में तो कश्मीरियों उत्तर प्रदेश छोड़ देने के पोसटर लगाये गये। हाल में पुणे में एक कश्मीरी छात्रा ते मामले में तो कश्मीर सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा था। इन ाटनाओं से कश्मीर में देश के प्रति दुराव बड़ रहा है और निहित स्वार्थी कट्टर पंथी जिहादियों कश्मीरी नौजवानों की बावनाओं को भड़काने का बेहतर मौका हासिल हो रहा है। नतीजतन कश्मीर कट्टरपंथी इस्लाम के कारण एक युद्ध क्षेत्र में बदलता जा रहा है। इसके मनोविज्ञान को देखें तो समझ में आयेगा कि यह इस्लाम का वही स्वरूप है जो पेरिस में के लिये जिममेदार है या फिर जितने बी जिहादी आतंकवाद है उनकी जड़ में जो मनोभाव होते हैं वही यहं बी दिखने लगे हैं। जब तक हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे तबतक शांति वार्ता के लिये पहल नहीं हो सकती है। जिसतरह पूरी दुनिया में इस्लाम के कट्टरपंथी, उग्रवादी स्वरूप को तबतक खत्म नहीं किया जा सकता जब तक मध्यमार्गी मुसलमान इसे सहयोग देते रहेंग। यह सहयोग कई कारणो से मिलता है मसलन जाति, आस्था या फिर बिरादरी के प्रति खास प्रकार की करुणा इत्यादि। जो किशोर या नौजवान कश्मीर में फौज पर पत्थर फेंक रहे हैं वे इतने कमउम्र हैं कि शायद ही राजनीति समझें लेकिन उन्हें धर्म और समुदाय के नाम पर बरगलाकर हथियार बनाया जा रहा है। जिन हाथों में कलम या किताबें होनी चाहिये थीं उन्होंने पत्थर उठा लिये हैं। यहां यह बता देना जरूरी हे कि सरकार कश्मीर की इस ताजा समस्या को देश, भारत राष्ट्र, से अलगाव के रूप में चित्रित कर रही है और राजनीति की संज्ञा दे रही है यह भी भ्रामक है। खबर है कि वहां हर जगह समुदायों में एक वीडियो दिखाया जा रहा है जिसमें हिजबुल मुजाहिदीन का नया नेता जाकिर रशीद बट नौजवानों से अपील करता है कि ‘वे कश्मीर के लिये नहीं इस्लाम की श्रेष्ठता के लिये लड़ रहे हैं। जब भी हम पत्थर या बंदूक उठायें तो हमारा इरादा कश्मीर के लिये लड़ाई का ना हो बल्कि हम इस्लाम के लिये मौत से जूझ रहे हैं क्योंकि इस्लाम में राष्ट्र या लोकतंत्र कुछ नहीं है जो है वह इस्लाम है।’ कश्मीर के किशोरों को बेहद चालाकी से एक ऐसी राह पर डाला जा रहा है जहां से वापसी का सफर नामुमकिन है। जरा सोचें, केवल मामूली इस्लाम ने 1947 में भारत विभाजन के दौरान क्या किया था तो यह कट्टरपंथी इस्लाम क्या करेगा इसकी कल्पना कर सकते हैं। अब वहां शांति केवल बातचीत से नहींी हो सकती है बल्कि हमें नयी रणनीति अपनानी होगी। अब यह ऐतिहासिक समस्या नहीं रह गयी है।     

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