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Thursday, April 27, 2017

रक्षकों से मुकाबला?

रक्षकों से मुकाबला ? 
अगर सियासती बड़बोले नारों को दरकिनार  कर दें तो हमारा देश इन दिनों गंभीर सामाजिक- आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है। यहां रिजगार का अभाव है, कृषि दिनोंदिन पिछड़ती जा रही है और हम गो रक्षा , मूर्तियों और प्रेमी जोड़ों के विहार पर बहस कर रहे हैं, उसे रोकने में लगे हैं। गायों के आधार कार्ड बनाये जायँ या नहीं इन्हीं सब बातों में उलझे हुए हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ लगातार सेवा भावी लोगों से अपील कर रहे हैं कि गैरकानूनी कसाई घरों के विरुद्ध लड़ाई को जारी रखें। इसी में से कुछ लोग छेड़खानी करनेवाले मजनुओं के खिलाफ गोलबंद हो गए हैं और सहमति के   प्रेम संबंधों से जुड़े युगलों को भी परेशान करने का अधिकार ले बैठे हैं। अयोध्या के विवादित ढांचे के अभियुक्तों में से कुछ ने तो यह घोषणा कर दी है कि उनका यह कार्य उतना ही गौरवशाली है जितना देश स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले नौजवानों का था। भारत अपनी " आन- बान और शान की रक्षा करने वाले , भ्रष्टाचार से दो- दो हाथ करने वाले और राष्ट्र की प्रतिष्ठा बचाने वाले " रक्षकों की तलाश में था जो उसे मिल गए। दिल्ली में पशु व्यापारियों की पिटाई होने लगी और पुलिस ने पीड़ितों को " पशुओं से क्रूरता" के आरोप में जेल भेज दिया। जैसा कि ऐसी हर घटना में होता है इन रक्षकों ने औरों के उत्प्रेरित - प्रेरित कर रक्षकों की जमात बना ली। इन रक्षकों के कारनामो से कई जगह आतांक व्याप गया , मुस्लिमों को धमकियां दी जाने लगीं, यू पी में तो कश्मीरियों के खिलाफ पोस्टर- बैनर लग गए। उन्हें चेतावनी दी जाने लगी कि यहां से तत्काल भागो वरना परिणाम झेलना होगा। बॉलीवुड का एक गवैया तो मुस्लिमों के खिलाफ गाने गाता घूमने लगा। इस हालात से प्रोत्साहित कश्मीर में तैनात हमारे जवान भी कुछ लोगों को वहां मारने पीटने लगे और पाकिस्तान मुर्दाबाद कहने के लिए बाध्य करने लगे। यही नही पिछले साल हमारे प्रधान मंत्री जी हठात नोटबंदी की घोषणा कर दी जिससे अर्थ व्यवस्था में शामिल 86%  करेंसी बेकार हो गई। ... और इस साल वित्त मंत्री अरुण जेटली ने  वित्त विधेयक 2017 में संसद में बगैर बहस के 33 संशोधन घुसा दिए। यह रक्षक भाव का ही रूप है क्योंकि इसे कानून की मंजूरी नहीं मिली थी। ये रक्षा कर्म वास्तव में विधि सम्मत नही होते और ये संभावित चोर दरवाजों का लाभ उठाते हैं। अब आधार कार्ड के ही मसले को देखें, इसमें कई कमियां हैं लेकिन संसद से मंजूरी दिला कर इस दोषपूर्ण प्रणाली को मानने के लिए बाध्य किया जा रहा है। राजनीतिक दलों द्वारा धन उगाही के क़ानून में संशोधन कर उसे कम पारदर्शी बना दिया गया।  
इन रक्षा कर्मों को उचित ठहराने के लिए तरह  तरह की कहानियां प्रचारित की जा रहीं हैं। उत्तरप्रदेश चुनाव ने तो अवांतर सत्य का नया प्रतिमान गढ़ दिया। लोगों को यह बताया जा रहा है तथा मानने पर बाध्य किया जा रहा है कि इस बहुमत का अर्थ नोटबंदी का समर्थन है। जन साधारण को यह समझाया जा रहा है कि धर्म और जाति आधारित मतदान अब पुराने दिनों की बात हो गई। भा ज पा को बहुमत का अर्थ देश भर में मुस्लिम और दलित विरोध है। ये रक्षक धीरे धीरे फैलते जा रहे हैं और संविधान उनकी ओट होता जा रहा है।प्रतिक्रियावादी खबरों के ताबड़तोड़ प्रचार से सही बात समझ पाना कठिन हो गया है । ऐसे में सांप्रदायिकता के विरूद्ध खड़ा होना मुश्किल होता जा रहा है। इसासे साफ पता चलता है कि राजनीतिक विरोध समाप्त हो चुका है और समाज के रूप में हम निर्बल होते जा रहे हैं। कुछ लोग तो यह भी कहने लगे हैं कि लोकतंत्र के योग्य हमारा समाज है ही नहीं। कोई कुछ नहीं बोल रहा है। अगर कोई कुछ कहता है तो उसकी बोलती बंद कर दी जाती है । यह बहुत दुखद स्थिति है। हालात ऐसे होते जा रहे हैं कि    कुछ दिनों के बाद देश भर में मुनादी होती सुनी जाएगी कि, ( भारती जी से क्षमा याचना सहित) 
खलक खुदा का , मुलुक बाश्शा का
हुकुशाहर कोतवाल का 
हर खासोआम को आगाह किया जाता है कि 
खबरदार रहें 
बच्चों को सड़क पर ना जाने दें
क्योकि रक्षकों का गिरोह देश गौरव रक्षा के लिए 
सड़कों पर निकल पड़ा है 
शहर का हर बशर वाकिफ है 
कि मार खाते भले आदमी को 
और अस्मत लुटती औरत को 
और गाय लेकर जाते लोगों को 
बचाने की बेअदबी ना कि जाय ।

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