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Friday, April 14, 2017

बहुत कुछ अशुभ होने वाला है

बहुत कुछ अशुभ होने वाला है 
अमरीका ने अफगानिस्तान के नांगरहार  में इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों पर निशाना साध कर  अबतक का सबसे बड़ा बम गिराया। 11 टन वज़न के इस अपरमाणु बम को " मदर ऑफ ऑल बम्स " कहा जाता है और हमले  के लिए पहली बार इसका प्रयोग किया गया है।  इसे मालवाही सैन्य विमान एम सी - 130 के पिछले दरवाजे से गिराया गया। जिस जगह पर यह बम गिराया गया  अफगानिस्तान का वह इलाका पाकिस्तान की सीमा पर है। इस बम को इराक़ युद्ध के समय विकसित किया गया था। लेकिन उस वक्त उसका उपयोग नही किया जा सका। वाइट हाउस का कहना है कि इसका निशाना लड़ाकों की सुरंगें थी और इस बात की सावधानी बरती गई कि इससे निर्दोष लोग ना मारे जांय। कुछ दिन पहले इसी स्तंभ मैं कहा गाया था कि तीसरे विश्व युद्ध का आगाज़ हो रहा है।  2012 के आखिरी दिनों से अबतक का वक़्त बेहद गर्दिश में है। अरब वसंत, बेंगाज़ी सीरिया और रसिया की घटनाओं और 21 अक्टूबर 2013 को पहली बार  घोटा पर  रासायनिक हथियारों का उपयोग और उसके बाद से अबतक कई बार रासायनिक हथियारों का उपयोग  साफ बताते हैं कि दुनिया एक खतरनाक मोड़ पर खड़ी है और एक ग्लोबल एजेंडा तैयार हो रहा है जिसके उद्देश्य खतरनाक हैं। जबतक पूरी तस्वीर को हम नही देखेंगे तबतक ताज़ा घटनाओं कोई नहीं समझ पाएंगे। जो खबरें मिल रहीं हैं उससे लगता है कि कई अशुभ घटनाएं होने वाली हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि क्या होने वाला है? यहां यह बता देना ज़रूरी है कि आज इस विश्व का जो वर्तमान है वह जंग और मध्य पूर्व में अमरीकी हस्तक्षेप की चौथाई सदी का नतीजा है। इसकी शुरुआत जॉर्ज बुश के जमाने में उस समय हुई थी जब दुनिया आधुनिकता और नई विश्व व्यवस्था में प्रवेश कर रही थी और 1991 में " डेजर्ट स्टॉर्म" की शुरुआत हुई थी। इसके बाद बराक ओबामा का शासन काल आया और उसके दूसरे चरण में वहां की सरकार में मुस्लिम ब्रदरहुड के समर्थकों ने जगह बना ली। हालात बिगड़ते रहे और उसका असर अमरीकी अर्थव्यवस्था पर दिखने लगा। इस्लामिक लड़ाके यह जानते थे कि  अमरीकी डॉलर की दादागिरी इसीलिए कायम है कि वे दुनिया भर में तेल के प्रवाह को अवरुद्ध नहीं कर रहे हैं। इसलिए उन्होंने निशाना तेल पर लगाया। अमरीकी नौसैनिक अवस्थापनाओं को ध्वस्त किया जाने लगा जिससे तेल का बहाव अवरुद्ध किया जा सके। डॉलर लड़खड़ाने लगा। जो लोग दुनिया के हालात पर नज़र रखे हैं उन्हें याद होगा कि जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस को अपना साथी कहा था तो प्रोग्रेसिव - ग्लोबलिस्ट  तत्वों ने उनकी आलोचना की थी। इसके बहुत गंभीर अर्थ थे।  अब ट्रम्प जो भी करे रहे हैं वह उनके पहले भाषण से अलग है। वे रोजगार को छोड़ हथियारों तथा जंग को तरजीह दी रहे हैं। उनकी यह मानसिकता युद्ध की आग को भड़का सकती है। अब अफगानिस्तान पर हमले की ही बात लें। अचानक आई एस के अड्डसों पर आसमान से हमला वह भी इतने बड़े बम से बहुत उचित नही प्रतीत होता। इसी तरह सीरिया पर मिसाइलों से हमला भी कुछ इसी तरह था।ताकत का ऐसा प्रदर्शन जिसका कोई नतीजा न निकले वह केवल शांति को खत्म करता है। दूसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत भी कुछ ऐसे ही हुई थी। इस समय पूरी दुनिया परमाणु बमों के ढेर पर  बैठी है और अगर तीसरा विश्व युद्ध होता है तो कितना विनाश होगा विस्का अंदाज़ा लगाना मुश्किल है। जरूरी है कि दुनिया को इस अखाड़े में उतारने रोका जाए।

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