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Tuesday, May 30, 2017

कितना बदल गया इंसान

कितना बदल गया इंसान
दुनिया के  किसी भी देश या धर्म में मानवता या इंसानियत का पहला गुण दया और प्रेम बताया जाता रहा है । जो लोग इंसानियत के प्रति अपराध करते हैं उन्हें सुधारने के लिए कानून बने हैं और जो कानून से नही डरते उन्हें दंड दिया जाता है । इधर कुछ दिनों से हमारे देश भारत में और दुनिया के कई और देशों में लोग कानून से डरना छोड़ रहे हैं  तथा इंसानियत के प्रति सबसे जघन्य अपराध जान से मार डालने की ओर बढ़ रहे हैं। अपने देश में कभी गो मांस को लेकर तो कभी गो हत्या को लेकर लागूं को पीट पीट कर मार दिए जाने की घटना कई बार सुनने को मिली पर हाल में  देश की राजधानी दिल्ली में ऐसी बर्बर घटना सुनने को मिली कि हैरत होने लगती है इंसान की सोच पर। विगत शनिवार को दिल्ली के मुखर्जी नगर में एक रिक्शा चालक को इसलिए लोगों ने पीट पीट कर मार डाला कि वह दो नौजवानों को सड़क पर पेशाब करने से रोकने की कोशिश कर रहा था। और कोशिश  भी कोई कोई रोका टोकी नहीं और ना कोई हाथापाई बल्कि वह बिचारा रिक्शावाला उन पर हंस रहा था कि सुलभ शौचालय बगल में है और ये सड़क पर पेशाब कर रहे हैं। समझ में नहीं आता कि क्या इस देश में कानून की इज़्ज़त करना अपराध है।आज हमारे देश में इसी का खतरा बढ़ता जा रहा है। लगता है कि इस देश में कानून को मानना और दूसरों को इसे मानने की सलाह देना सब्सडी बड़ी गलती है। सामूहिक हिंसा एक ऐसा उन्माद है जिसे नियंत्रित वातावरण  में नही रखा जा सकता है। वाट्सएप और ट्वीटर के जरिये उठाया गया हिंसा ज्वार गौ आतंकियों ( इन्हें गौ रक्षक नहीं कहा जा सकता है) को भड़का कर हिंसा की ओर प्रवृत्त करता है। इसे रोकने की कोशिश करने वालों या इसकी आलोचना करने  वालों के साथ भी ऐसे ही बर्ताव किया जाता है।सरकार भी जाने अनजाने उन्हें बढ़ावा देती है। अब मुखर्जी नगर वाली ही घटना को देखें । इस घटना के तुरंत बाद शहरी विकास मंत्री एम वेंकैया नायडू ने कहा कि " उसे इसलिए मारा गया कि वह स्वच्छ भारत की तरफदारी कर रहा था।" यानी मारने वाले स्वच्छ भारत के मुखालिफ थे मतलब विरोधी दल के थे। अब साधारण गुंडागर्दी और हत्या की घटना पर राजनीति का  पर्दा डालने का प्रयास किया जा रहा है। यह कैसी विडम्बना है कि स्वच्छ भारत परियोजना अब नाकामयाब ह्यो चुकी है और आम भारतीय पर अधिभार लगाकर उसके लिए पैसे वसूले जाते हैं और थोड़ी देर के लिए मान भी लें कि इसमें वे पैसे लगाए भी जाते हैं लेकिन नतीजा तो सिफर ही रहता है। एक तरफ सरकार फेल होती जा रही है और दूसरी तरफ आबादी का मानसिक वातावरण उत्तप्त होता जा रहा है। स्वच्छ भारत अभियान फकत पोस्टरों में दिख रहा है, आंदोलन नहीं बन पा रहा है। नायडू ने दिल्ली की घटना की निंदा की लेकिन उन्होंने झारखंड, उत्तर प्रदेश , राज स्थान , मध्य प्रदेश , असम , हरियाणा की घटनाओं की क्यों नहीं निंदा की?  सच तो यह है कि अधिकांश मामलों में पीड़ितों के खिलाफ ही प्राथमिकी दर्ज की गई है। दूसरा सवाल है कि हमारे नौजवान इतने क्रूर क्यों होते जा रहे हैं? किसी भी घटना पर सीधे मार पीट पर उतर जाते हैं। फेस बुक और वाट्सएप तो गुस्से के इज़हार का सबसे बड़ा साधन बन चुका है? क्या  उनकी सामूहिक कुंठा इसका कारक है?अगर यह सच है तो बहुत बुरा है। रपटों पर रपटें आ रहीं हैं और पता चल रहा है कि रोजगार नहीं बढ़ रहे हैं साथ ही दिनोदिन रोजगार घटते जा रहे हैं। परिणाम यह हो रहा है कि बेरोजगार नौजवानों की आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही है और इससे बढ़ने वाली कुंठा क्रोध को जन्म दे रही है। चाहे वह रोजगार के घटते अवसर हों या रोजगार के नए अवसरों का अभाव हो सच तो यह है कि आज के नौजवानों की सुनिश्चित आय के साधन घट रहे हैं। इस खीझ तथा कुंठा की अभिव्यक्ति सड़कों पर हिंसा के रूप में देखी जा रही है। 
भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने हाल ही में कहा कि " सबको नौकरी देना सरकार के वश में नहीं है इसलिए उद्यमिता और स्वरोजगार को बढ़ावा दिया जा रहा है। शाह के इस बयान को अगर नोटबंदी के संदर्भ में लें तो यह देश की जनता से क्रूर मज़ाक कहा जायेगा क्योंकि नोटबंदी का सबसे बुरा असर लघु उद्योग,छोटे मोटे कारोबारियों , दिहाड़ी पर काम करनेवालों , काम वेतन पाने वालों पर पड़ा है। 
अब अपने देश में जो गोरक्षा के नाम -पर जो हिंसा हो रही है वह महामारी का स्वरूप ले चुकी है और अब इसे रोना बहुत जटिल है। जब किसी घटना को मामूली बता कर उसे टाल दिया जाता तो एक तरह से उसे  पुरस्कृत किया जाता है।

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