CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Friday, June 16, 2017

गांधी पर ‘टिप्पणी’ का विरोध जरूरी

गांधी पर ‘टिप्पणी’ का विरोध जरूरी

 भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने हाल में महात्मा गांधी को चतुर बनिया कह दिया। उनकी इस टिप्पणी को लेकर मीडिया में थोड़ी सनसनी हुई और फिर सब कुछ थम गया। कुछ लोगों ने इसे सकारात्मक बताया और कुछ ने इसे अपमानजनक कह दिया। लेकिन सच तो यह है कि गांधी इन दोनों विचारों से अलग थे। जिन्होंने गांधी को जाना है वे जानते हैं कि गांधी ने खुद को कई बार बनिया कहा है और दूसरे उन्होंने अपना जीवन एक खुली किताब की तरह बनाया जिसकी आलोचना भी हो सकती है। कग्ति हैं कि गांधी ने खुद को कभी इतनी ऊचाई पर ननहीं स्थापित किया जिसकी आलोचना ना हो या कोई ना कर सके। गांधी ने हमें यानी इेसानी कौम को जीवन का मूल्यांकन करने की व्यवहारिक विधि बतायी, स्वयं की आलोचना करना सिखाया। यही नहीं अगर शाह के प्रति हम ईमानदार है और नम्र है तो गांधी पर उनकी इस टिप्पणी के लिये उनकी आलोचना नहीं होनी चाहिये। इतना ही नहीं शाह की आलोचना करने के पूर्व हमें उनकी टिप्पणी के संदर्भ को समझना जरूरी है। शाह का इशारा यह था कि गांधी में अत्यंत दूरदृष्टि थी और उन्होंने कांग्रेस के भविष्य को भांप लिया था तथा इसी के कारण वे आजादी के बाद इसे भंग करने की सलाह दी थी। इस टिप्पणी में कुछ भी ऐसा नहीं था जिसकी आलोचना की जा सके। शाह की आलोचना इसलिये भी नहीं होनी चाहिये क्योंकि यह वर्तमान की राजनीतिक जुमलेबाजी का एक हिस्सा है। आज का समय सच के संधान के लिये बेचैन है। अबसे पहले भी कई ज्ञानगुमानियों ने गांधी को एक रूढ़िवादी हिन्दू कहा है और लिखा है। यह भी लिखा है कि वे एक  ‘बनिया’ के तौर पर किसी ब्राह्मण से भी ज्यादा ब्राह्मण थे। कुछ दिन पहले ‘इकॉनमिक एंड पोलिटिकल वीकली’ पत्रिका में निशिकांत कोलगे ने  एक लेख लिखा था कि ‘क्या गांधी जाति व्यवस्था के समर्थक’ थे। इसमें लेखक ने कहा है कि ‘समरनीतिक कारणों से गांधी ने जाति व्यवस्था के कुछ पहलुऔं का समर्थन किया और उसको जरूरी भी बताया। हालांकि वे आरंबिक दिनों से ही जाति व्यवस्था के विरोधी थे। उन्होंने अब्पनी बिरादरी के सारे धार्मिक नियमों का उल्लंघ्न किया और यही नहीं अपनी पत्नी कस्तूरबा को भी ऐसा करने के लिये प्रेरित किया।’ जिन्होंने गांधी पर शोध किया है वे जानते हैं कि गांधी ने अपने लम्बे संघर्ष के दौर में कटई रणनीतियां अपनायीं। यह स्पष्ट किया जाना चाहिये कि अमित शाह ने गांधी को उनकी जातीय पहचान से जोड़ कर उनके साथ अन्याय किया है। क्योंकि गांधी ने जीवन पर्यंत जाति व्यवस्था के मुखालफत की है। लेकिन शाह की टिप्पणी के विरोदा का यह एक मात्र कारण नहीं है।इसके कई और जबरदस्त कारण हैं। शाह जिस समाज में पले बड़े हैं यह टिप्पणी उस समाज को भी प्रतिबि​म्बित करती है। शाह का लालन पालन एक ऐसे समाज डमें हुआ है जिसमें जाति से ही आदमी की पहचान बनती है उसको शोहरत हासिल होती है। यह एक गंभी मनोवैज्ञानिक कारण है कि वे दूसरों को भी उसकी जाति से ही पहचानते हैं। वे जिस तरह की राजनीति करते हैं यह यह इस बात का भी प्रमाण है। शाह उस राजन​तिक पार्टी के अध्यक्ष हैं जो अच्छी तरह जानती है कि भारत में वोट हासिल करने में जाति बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। इसी लिये वे जाति के चश्मे से दूसरों को देखते हैं। यही नहीं जिस संगठन के आदर्श को वे मानते हैं वहां गौ माता की रक्षा के लिये दूसरों को जाति और धर्म से ही पहचाना जाता है। यही नही उनकी टिप्पणी यह भीण् बताती है कि अपने समाज में अकादमिक चिंतन और विमर्श का अभाव है। यही नहीं भारतीय समाज विज्ञान में यह के अनुसार देश में सैद्धांतिक ब्राहमणों तथा व्यवहारिक शूद्रों के बीच विशाल खाई है और कहीं बी समाज वैज्ञानिक तौर पर समतावादी स्थिति नहीं है। शाह की टिप्पणी ने गांधी को धंधा रोजगार करने वाले एक समुदाय से जोड़ कर उनका कद छोटा कर दिया। यही नहीं शाह की बात यह भी बताती है कि देश में हर स्तर पर जाति कितनी ताकतवर व्यवस्था है। भारत में जाति अभी भी एक दुराग्रह है। विख्यात दार्शनिक जैक देरीदा ने कहा है कि ‘धर्म सदा एक ऐसी अभिव्यक्ति है जो पहले से नियत है इसका स्वतंत्र तौर पर चुनाव नहीं हो सकता है।’ देरीदा के कथन का स्पष्ट अर्थ है कि जो दूसरों द्वारा तयशुदा रास्ते अपनाता है वह स्वतंत्र कहां है? शाह की टिप्पणी ने गांधी आदर्शो का और उनके संघर्षो का कद छोटा कर दिया। 

0 comments: