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Wednesday, June 21, 2017

कश्मीर में बढ़ता आतंक

कश्मीर में बढ़ता आतंक

निस्संदेह कश्मीर आज जितना भारत विरोधी हो गया है उतना शायद कभी नहीं रहा। घाटी में जे भी थेड़ा बहुत जन समर्थन हासिल था भारत को वह उसे खोता जा रहा है। हिंसा का सिलसिला सन 2000 से जो घटना शुरू हो गया था और उम्मीद बढ़ने लगी थी कि 70 साल पुरानी यह समस्या सुलझ जायेगी और चारो ओर अमन हो जायेगा। लेकिन इन दिनों हालात बिगड़ने लगे हैं। समस्या के हल की संभावना धुंधलाती जा रही है और ऐसा महसूस हो रहा है कि देश एक अंदोरी सुरंग में जा घुसा है जहां ​निगाह की हद तक समाधान की कोई रोशनी नहीं दिख रही है। जबसे मोदी सरकार ने सत्ता संभाली है तबसे अबतक तीन वर्षों में 207 सैनिक कश्मीर में मारे गये। इतना ही नहीं अब वहां कश्मीर पुलिस पर भी हमले होने लगे हैं। कश्मीर पुलिस में अधिकांश स्थानीय नौजवान हैं। पाकिस्तान समर्थित आतंकियों का यह साफ संकेत है कि स्थानीय नौजवान सुरक्षा के काम से हट जाएं अगर कोई नहीं हटता तो मारा जायेगा। अनंतनाग में लश्कर-ए- तैयबा की अनंतनाग में बर्बर कार्रवाई केवल बदले की कार्रवाई नहीं थी बल्कि यह स्थानीय आबादी के नैतिक साहस को खत्म करने के लिये अभिप्रेत थी। महज इस एक कार्रवाई से पाकिस्तान की आतंकी मशीनरी ने उस सकारात्मक भावना को मसल दिया जो सितम्बर में सेना में भर्ती होने के लिये 5000 नौजवानों के सामने आने से अंकुरित हुई थी। पिछले महीने गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा ​था कि ‘कश्मीर की समस्या स्थाई हल खोज लिया गया और उसे कार्यरूप देने की पहल शुरू हो गयी है। ’ गृहमंत्री के इस बयान के बाद जम्मू और कश्मीर में पुलिस, अर्द्धसैनिक बल और सेना पर हमले बढ़ गये हैं। मौदी सरकार की तरफ से इस बात की कोई कैफियत नहीं है कि वह स्थाई समाधान क्या है, उसका दायरा क्या है और उसकी प्रक्रिया कहां और कैसे शुरू हुई है। दूसरी पाकिस्तान र्थ्थित आतंकियों की बर्बरता बड़ती जा रही है। इन दिनों तो शायद ही कोई दिन होता है जब आतंकी संरक्षा बलों या पुलिस पर हमला नहीं करते। राज्य में सुरक्षा की स्थिति को लेकर भ्रम बढ़ता जा रहा है और रोज रोज के राजनीतिक विभ्रम के कारण यह भ्रम और गहरा होता जा रहा है। राज्य में पीपल्स डिमोक्रेटिक पार्टी सत्ता में है अथैर मुफ्ती महबूबा मुख्यमंत्री है। इस पार्टी का भाजपा से गठबंधन है। मुख्यमंत्रगी लगातार बयान दे रहीं हैं कि समस्या को कश्मीरी अलगाववादियों और पाकिस्तान से बातचीत से सुलझाया जाय। मोदी सरकार जो कर रही हैं या कह रही है वह मुफ्ती की बात के विपरीत है। अब सुरक्षा बल या राज्य पुलिस पाकिस्तान समर्थित आतंकियों से कैसे मुकाबला कर सकती है जब राज्य सरकार और केंद्र सरकार के नजरिये बिल्कुल अलग अलग हैं। वहां कैसे कोई स्थाई समाधान हो सकता है जब राज्य सरकार तथा भाजपा बेशक एक ही एक ऐसे रथ पर सवगर हैं जिसमें दो घोड़े लगे हैं और दोनागें रथ को विपरीत दिशाओं में ख्गींचने की कोशिश में लगे हैं। यही नहीं यह स्थाई समाधान कहां गढ़ा गया? दिल्ली में प्रधानमंत्री कार्यालय में या गृहमंत्री के दफ्तर में। आमतौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर डालने वाले महत्वपूर्ण फैसले करने के लिये एक मानक सरकारी तरीका होता है। राष्ट्रीय सुरक्षा की कैबिनेट कमिटी की बैठक होती है और प्रस्ताव के रेशे रेशे पर विचार होता है लेकि कश्मीर समस्या का हल खोजने के लिये कैबिनेट कमिटी की बैठक नहीं हुई। यही नहीं वहां क्षण-क्षण और जर्रे- जर्रे की खबर रखने वाली खुफियागीरी खत्म हो गयी है इसका मतलब है कि स्थनीय लोगों से सम्पर्क का नेटवर्क छिन्न भिन्न हो गया है। सरकार समस्या को फौलादी हाथों से दबाना चाहती है। यह तरीका काम नहीं आ रहा है। इसे देख कर लगता है कि सरकार के पास कश्मीर से सम्बंधित कोई नीति है ही नहीं। अगर है तो क्या यह वार्ता से समस्या का समाधान खोजने के लिये गढ़ी गयी है। जबसे भारत और पाकिस्तान आजाद हुये उनके विवाद का मुख्य कारण कश्मीर रहा है। 1995 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने कश्तमीर की आजादी की मांग को सीदो खारिज कर दिया था और कहा था कि स्वायत्तता बनी रहेगी। उनके बाद की सरकारों ने भी इसे जारी रखा। यहां तक अटल ब्गिहारी वाजपेयी का ‘इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरीयत का कश्मीर सिद्धांत’ भगी कुछ सकारात्मक रहा। मनमोहन सिंह ने घाटी में समान्य सदृश स्थिति पैदा की और पाकिस्तान से सम्बंधों में सुदार किये जबकि कई लोगों ने इस कोशिश को नाकाम करने का प्रयत्न भी किया। लेकिन जब 2014 में ‘हिंदू ह्रदय सम्राट’ सत्ता में आये तो कश्मीर में हालात बिगड़ने लगे। मोदी जी ने कश्मीर पर कब्जा करने की गरज से पी डी पी से गठबंधन कर लिया। घटता हुआ आतंकवाद बढ़ने लगा। सत्ता में आने के बाद मोदी जी ने कश्मीर के संबंध में केवल यही किया है कि वह आतंकवादियों के मामले में आत्मनिर्भर हो गया। अब कश्मीर में बाहर से आतंकी नहीं आते, वहीं के लोकल छोकरे यह काम कर लेते हैं। उन्हें स्थानीय मदद भी बहुत मिलती है। उनके खिलाफ किसी भी कार्रवाई के बाद गांव वाले , मोहल्ले वाले सड़कों पर उतर आते हैं। अशांत और हिंसक कश्मीर भारत के लिये अशुभ है और विदेशों में इसग्की छलव के लिये भी खराब है। पर मोदी जी के लिये लाभदायक है, उनकी हिंदुत्व राजनीति के लिये भी लाभदायक है। कश्मीर में अनवरत थ्शांति मोदी जी और उनकी पार्टी के लिये देश में हिंदू रगष्ट्रवाद के नाम पर हिंदू एकजुटता कायम करने में सहूलियत होगी। देश की क्षेत्रीय अखंडता से जुड़ा नारा 2019 के चुनाव में व्यापक भावुकता पैदा करेगा। इससे सामाजिकग् आर्थिक मोर्चों पर सरकार की विफलता पर भी पर्दा पड़ जायेगा। देश के व्यापक हित के लिये जरूरी है कि कश्मीर के मामले में मोदी राजनीतिज्ञ नहीं राजनेता बनें। क्या यह अपने प्रधानमंत्री से उम्मीद नहीं की जा सकती है?      

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