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Thursday, June 8, 2017

नए राष्ट्रपति की तलाश

नये राष्ट्रपति की तलाश
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर देश के सियासी हलकों में भारी सनसनी है और लोग तरह तरह की अटकलें लगा रहे हैं। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का कार्यकाल 24 जुलाई को समाप्त हो रहा है। संविधान की धारा 62 के मुताबिक वर्तमान राष्ट्रपति का कार्यकाल समाप्त होने के पहले नये राष्ट्रपति का चुनाव अनिवार्य है। चुनाव आयोग ने चुनाव की दिशा में पहला कदम उठाते हुये बुधवार को चुनाव की तारिखों की घोषणा कर दी। इस घोषणा के अनुसार भारत के नये राष्ट्रपति के चुनाव के लिये 17 जुलाई को पूर्वान्ह 10 बजे से संध्या 5 बजे तक मतदान होगा और मतों की गणना 20 जुलाई को पूर्वान्ह 11 बजे से शुरू होगी। यह मतदान गुप्त होगा और मतपत्र किसी को भी नहीं दिखाया जा सकता है। भारत में राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है। निर्वाचक मंडल में देश के सांसद और विधायक भाग लेते हैं और आनुपातिक तौर पर उनके मतों की संख्या होती है। निर्वाचक मंडल में एन डी ए का मत परिमाण आधा से कुछ ज्यादा है। लेकिन इतना जरूर है कि वह अपने उममीदवार को जिता सके। चुनाव के लिये अधिसूचना 14 जून को जारी होगी और नामांकन पत्र भरे जाने की आखिरी तारिख 28 जून को होगी और 1 जुलाई तक नामांकन वापस लिये जा सकेंगे।  

इस चुनाव में मतदान के लिये ई वी एम मशीन का उपयोग नहीं होगा और परम्परागत ढंग से मतपत्रों के ​जरिये वोट दिये जायेंगे। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं लगाया जाना चाहिये कि ई वी एम मशीन पर हुये विवाद के कारण यह कदम उठाया गया है बल्कि मशीन में आनुपातिक चुनाव की तकनीक नहीं विकसित की जा सकी है अतएव मतपत्रों का उपयोग किया जा रहा है। मतप्रपत्र किसी भी भाषा में भारे जा सकते हैं पर प्राथतिकता का उल्लेख केवल संख्याओं में करना होगा। मतपत्तों की वैदाता के लिये प्राथतिकताओं का उल्लेख जरूरी है। मतपत्रों पर प्राथमिकताओं के निशान लगाने के लिये आयोग द्वारा विशेष कलम मुहैय्या करायी​ जायेगी। केवल इसी कलम का उपयोग करना होगा अन्य कलम से मतपत्र पर निशान लगाये जाने से उसकी वैदाता रद्द कर दी जायेगी। इस बार लोकसभा के सेक्रेटरी जनरल इस चुनाव के रिटनिंग अफसर होंगे। मतदान संसद भवन और राज्यों के विधान सबा भवनों में होगा। इस चुनाव की जो सबसे बड़ी विशेषता है वह हे कि हर उममीदवार के 50 प्रह्तावक होंगे और 50 समर्थक होंगे। अगर कोई मतदाता एक से ज्यादा उममीदवार का प्रस्ताव करता है या समर्थन करता है तो वह अवैध होगा। यानी एक उम्मीदवार के पीछे कम से कम 100 मतदाताऔं का होना अनिवार्य है। पार्टियां व्हिप नहीं जारी कर सकतीं हैं और नाजायज प्रभाव भी नहीं डाला जा सकता है मतदाताओं पर।

इस सरकारी या शसांविदानिक वर्जिश के अलावा राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां भी कम नहीं हैं। विपक्षी दल साझा उम्मीदवार खड़ा करना चाहते हैं पर किसे किया जाय यह अभी तक तय नहीं हो सका है। सभी दलों ने आपसे में चर्चा तो जरूर की है किसे प्रणव मुखर्जी के बदले चुना जाय या कौन इस पद के लिये उनका उम्मीदवार होगा। पर अब किसी सहमति पर वे नहीं पहुंच पाये हैं।  इसकेपूर्व शरद पवार की नाम उछला था पर उन्होंने इससे मना कर दिया और कहा कि वे अब एक ‘बंद अध्याय’ हैं। उनहोंने इस बात से विपक्षी दलों को अवगत भी करा दिया है। पवार के अलावा इसके लिये बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी, जद यू नेता शरद यादव ओर लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष मीराकुमार के नाम भी चर्चा में हैं। दूसरी तरफ भाजपा ने अपना पत्ता नहीं खोला है कि कौन उसकी ओर से उम्मीदवार होगा। वैसे दक्षिण बारत की क्षेत्रीय पार्टियों का समर्थन हासिल करने के बाद उम्मीद है कि भाजपा का ही उम्मीदवार विजयी होगा। क्योंकि सत्तारूढ़ गठबंदान की जो मामूली कमी थी वह इन ध्लों के समर्थन से पूरी हो गयी। प्रधानमंत्री वैसे ही अममीदवार का चयन करेंगे जो इन पार्टियों को पसंद आये। वैसे जिन लोगों के नाम पर विचार होने की चर्चा है उनमें सुषमा स्वराज, वैंकया नायडू, टी सी गहलोत और झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुरमू शामिल हैं। पिछले महीने भाजपा अध्यक्ष ने स्पष्ट कर दिया था कि वे राय सबकी लेंगे लेकिन जरूरी नहीं है कि सहमति का ही उम्मीदवार हो। भाजपा के सूत्रों का कहना है कि पार्टी चुनाव करवाने में दिलचस्पी रखती है क्योंकि इससे पार्टी को अपनी ताकत का प्रदर्शन करने का मौका हासिल होगा। इसका लाभ गुजरात और कर्नाटक के चुनाव में मिल सकता है। इसके पूर्व ममता बनर्जी और कई क्षेत्रपों ने सुझाव दिया था कि सरकार एक साझा उम्मीदवार ख्गड़ा कर दे ताकि चुनाव से बचा जा सके। उधर कांग्रेस नेता सोनिया गांधी विपक्ष को पटा रहीं हैं ताकि विपक्ष का एक ही उम्मीदवार खड़ा हो सके।विपक्ष के कई नेताऔं ने इसका समर्थन भी किया है। वे चाहते हैं कि एकजुट रहे विपक्ष जिससे 2019 में भाजपा को घेरा जा सके। विपक्ष चाहता है कि भाजपा पहले पत्ता खोले और अगर उसे नहीं सहमति मिली तो वे अपना उम्मीदवार तय करेंगे। वामपंथी नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि विपक्ष उपराष्ट्रपति के लिये उम्मीदवार के लिये भी सचेष्ट है।

 

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