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Monday, July 10, 2017

लालू ही क्यों, पनामा वाले क्यों नहीं

लालू ही क्यों, पनामा वाले क्यों नहीं ?
विरोधी दलों के नेताओं पर दनादन छापे पड़ रहे हैं। सारदा- नारदा से लेकर लालू तक पर छापे पड़ रहे हैं और मीडिया में जम कर प्रचार किया जा रह है। अभी जिस राजनीतिक परिवार के घोटाले का सबसे हाई वोल्टेज प्रचार कर यह साबित करने की कोशिश की गयी कि राजनीति , खासकर विपक्षी दलगें के परिवार तक करप्शन के दलदल में अजानु धंसे हुये हैं। अभगी जिस करप्शन और सी बी आई छापे की सबसे ज्यादा चचाॡ् हो रही है वह 2006 का मामला है। ताजा नहीं है। यहां सवाल उठता है कि विपक्षी राजनीतिक दलों के नेता ही सेवल करप्ट हैं क्या? एन डी ए के लोग दूध के धुले हैं। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की कुख्यात ललित मोदी से सांठ गांठ क्या करप्शन नहीं है? कानून से भागे उस घोटालेबाज के मामले में क्या हुआ यह जगजाहिर है। उनपर सीबीआई ने क्यों नहीं कार्रवाई की? क्या सुप्रीम कोर्ट ने सी बी आई को केंद्र सरकार के पिंजड़े का तोता कहा था वह गहयत था? इसके पहले पूर्व विदेश मंत्री पी चिदम्बरम और उनके अराजनीतिक पुत्र कार्तिक पर छापे पड़े थे। यहां तक कि उस मीडिया को

भी नहीं छोड़ा गया जो सरकार के मन की खबरें नहीं देता था। एक मीडिया पर जांच बिठाने के बाद जब कुछ हाथ नहीं लगा तो फौरन से पेश्तर उस मामले को दाखिल दफ्तर कर दिया गया। लेकिन अरबों डालर विदेश में पनामा बैंक में जमा करने वाले मामले में कुछ नहीं किया गया। अंतरराष्ट्रीय पत्रकारों के एक संगठन (आई सी जे) की जांच से पता चला है कि इस मामले में 500 भारतीय दोषी हैं। इन्होंने अरबों डाल का काला धन अवैध तौर पर देश से बाहर लेजाया गया। इन पांच सौ लोगों में उद्योग पति , राजनीतिज्ञ और अभिनेता सब शामिल हैं। साल भहर पहले जिन नामों की घोषणा हुई थी उनमें अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय जैसे अभिनेता , कई उद्योगपति शामिल थे।  सबने एक सुर में ऐसे किसी काम से इंकार कर दिया और सरकार ने मान लिया , बिना किसी जांच के। क्योंकि इन सब पर मोदी सरकार का हाथ था। अन्य देश इतने ढीले नहीं हैं। आइसलैंड के प्रधानमंत्री को ऐसंे ही एक घोटाले के मामले में इस्तीफा देना पड़ा था। रूस के सत्तारूढ़ दल के करीबी एक सेलिस्ट के कारण पूरी सरकार की जम कर खिंचाई हुई थी। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाजशरीफ के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। ऐसा देश जो धन के व्याकुल है, विदेश से निवेश के लिये ​घिघियाता चलता है उस देश के लिये पनामा की दौलत तो वरदान हो सकती है। मोदी सरकार के मुताबिक बैंक के नियम के मुताबिक निवेशकों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। स्विस बैंक का बड़ा शोर हुआ. अंतरराष्टॅय एजेंसियों से पूछताछ भी हुई। बाद में सबकुछ बंद कर दिया गया। लेकिन क्या बात है कि अइन्य देशों की सरकारों ने अपने देश के इस तरह के अपरादियों की जम कर खबर ली और मीडिया में भी धमाकेदार खबरें उछलीं। लेकिन मोदी जी सरकार ने जबान पर ताला लगा रखा है। कालाधन एक अपराध है। कालेधन को ही खत्म करने के लिये मोदी जी ने नोटबंदी की। अब लगता है कि यह कोशिश बेकार हो गयी। यह भी कहा जा सकता है कि यह खुद में एक राजनीतिक बयानबाजी थी। इस पर अबतक बहुत कुछ कहा जा च्गुका है और उसके बाद यानी नोटबंदी के बाद नयी नीति भी बन चुकी है। लेकिन पनामा पेपर्स को लेकर इतना सन्नाटा क्यों है? आई सी जे की जांच पर इस देश में किताब भी लिखी जा चुकी है। लेकिन मीडिया एक दम हैरतअंगेज ढंग से चुप है। गौरक्षा का नाम लेकर चीखने वाले चैनली एंकर भी न जाने क्यों चुप हैं इस मसले पर। क्या पनामा पेपर्स अन्य घोटालों की तरह केवल एक घोटाला है? क्या सरकार इससे आंखें मूद लेगी? क्या यह चुप्पी इसलिये है कि जिनके नाम हैं इस घोटाले में सब ऐसे लोग हैं जिनके सरकार से चोली दामन का साथ है या उनहोंने इतनी कम रकम जमा कर रखी है जो नगण्य है? पहली बात कि काला धन अपराध है और दूसरी बात कि जब यह छिपा कर विदेशों में जमा है तो और बड़ा अपराध है। अरबों डालर देश से तस्करी के जरिये ले जाये गये। यह देश की आमदनी की चोरी है। यह कोई साधारण बात नहीं है। इससे भारतीय संविधान को भी खतरा है। क्या विडम्बना है कि पंजाब विधान सभा चुनाव से कुछ दिन पहले कैप्टन अमरिलंदर सिंह विदेशों में दौलत जमा करने के दोषी पाये गये थे पर क्या हुआ?एक कांग्रेसी नेता पर आरोप , जो साबित नहीं हो सके, को बड़ा चढ़ा कर पेश किया गया। मामूली धन के मामले में तृणमूल नेताओं की जमकर फजीहत की गयी या अगर भदेस भाषा में कहें तो ‘लेंड़ी को पहाड़ बना दिया गया’ लेकिन पनामा पेपर्स पर चुप्पी साध ली गयी। यह दोहरा मापदंड है। क्या भारत का विरोधी दल इसे एकजुट होकर उठायेगा या इसी तरह भारत की दौलत तस्करों के कंधे पर सवार होकर विदेश जाती रहेगी। देश केवल सत्तारूढ़ दल के नेताओं और उनके भक्तगें का नहीं है , विरोधी दलों और हमारा और आपका भी है। हमें बी इसकी हिफाजत का हक है। चोर चाहे जो हो उसे पकड़ के सामने लाना सबका कर्त्तव्य है। 

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