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Wednesday, July 12, 2017

बढ़ रहा है अमन को खतरा

बढ़ रहा है अमन को खतरा
एक् ग्लोबल सर्वे में कहा गया कि पिछले साल से भारत में इस साल हिंसक अपराध कम हुये हैं पर इस साल अमन को खतरा बढ़ गया है और यह देश में शांति घट रही है। न्यूयार्क के थिंक टैंक इंस्टीट्यूट ऑफ इकॉनोमिक्स एंड पीस के ताजा ग्लोबल पीस इंडेक्स (जी पी आई ) की रपट के मुताबिक भारत में प्रभावशाली कानून व्यवस्था से पिछले वर्ष की तुलना में हिंसक अपराध घटे हैं पर एक दशक पहले जितना चैन ओ अमन था इस देश में , इस साल उससे कम है। उसने जो आंकड़े दिये हैं उससे साफ लगता है कि देश में चैन ओ अमन को खतरा बढ़ रहा है। जहां तक हिंसक अपराध का मामला है 163 देशों की फेहरिस्त में पिछले साल भारत का स्थान 141 था जबकि इस वर्ष यह घट कर 137 हो गया है। हालांकि बाहरी हमलों में मरने वालों की तादाद बढ़ी है। रिपोर्ट में 2016 के मध्य में कश्मीर में मरने वालों की संख्या और उसके कारक के तौर पर कश्मीर उपद्रव की ओर भी इशारा है। हालांकि दुनिया में सबसे ज्यादा बदअमन देश ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका हैं जहां हर वक्त अशांति का भय बना रहता है। भारत इन दिनों ऐसा देश हो गया है जहां उनसे भी ज्यादा शांति को भय है। जी पी आई के आंकड़ों में जिस देश का स्कोर जितना ही कम होगा वह देश उतना ही शांतिपूर्ण माना जायेगा। एक दशक पहले भारत का स्कोर था 2435। इस साल आइसलैंड का स्कोर सबसे कम 1111 है जो दुनिया का सबसे शांतिपूर्ण जगह है। इस तुलना में भारत का स्कोर है 2541। समाज में सुरक्षा और आरक्षा,अंदरूनी और बाहरी संघर्ष तथा सेना के उपयोग की व्यापकता के इत्यादि जैसे 23 सूचकों के आधार पर शांति की यह सूची यानी पीस इंडेक्स तैयार की जाती है। हालांकि यह केवल भारत की बात नहीं है, पूरी दुनिया में 2016 की तुलना में शांति का फिनॉमिनकि विस्तार होते देखा ज रहा है। शांति के इस विकास का औसत 0.28 प्रतिशत ही है। शांति की इस रैंक में ब्राजील की स्थिति सबसे अच्छी है। उसका रैंक है 116, जबकि चीन 123,दक्षिण अफ्रीका 123 और रूस 151 है। भारत के दक्षिण एशियाई पड़ोसियों सर्वाधिक शांतिपूर्ण देश भूटान (13), श्रीलंका (80) , बंगलादेश (84) और नेपाल (93) है। जबकि पाकिस्तान (152) और अफगानिस्तान (13) की स्थिति सबसे खराब है।

यह तो सब जानते हैं कि हिंसा से सदा आर्थिक क्षति होती है। 2016 में भारत में क्रय शक्ति समानता के आधार पर 47.5 लाख करोड़ रुपयों की क्षति हुई थी। यह भारत के कुल जी डी पी के 8.7 प्रतिशत के बराबर है और प्रतिव्यक्ति इसका असर 36,500 रुपये था। यदि प्रति व्यक्ति मूल्य पर आकलन करें यह चीन से भी ज्यादा है। चीन में हिंसा के कारण प्रति व्यक्ति 517 डालर का नुकसान हुआ जो भारत के 712 डालर से कम है। चीन के जी डी पी पर भी इसका प्रभाव भारत से कम है। यह मात्र 3.5 प्रतिशत ही है। 2016 में हिंसा के फलस्वरूप हुई क्षति का ग्लोबल असर भी काफी था। यह 2016 में 14.3 ट्रिलियन यानी खरब डालर था। जिसका प्रतिव्यक्ति असर 1 लाख 25 हो गया। शांति स्थापित करने के लिये किये गये 1 डालर खर्च से अशांति का 16 डालर का असर घट जाता है। हिंसा से होने वाली प्रति व्यक्ति क्षति भारत में दक्षिण अफ्रीका से 5 गुना, रूस से 7 गुना ज्यादा है। जबकि दक्षिण एशियाई देशों में भारत में हिंसा से होने वाली क्षति पाकिस्तान से 12 प्रतिशत, श्रीलंका से 45 प्रतिशत कम है। 163 देशों की सूची में भारत का स्थान 70वां है। गृह युद्ध से तहस नहस हो गये सीरिया में जी डी पी का 67 प्रतिशत, इराक में 68 प्रतिशत और अफगानिस्तान में 52 प्रतिशत विनष्ट हो गया। आतंकवाद की​ स्थिति में भी मामूली सुधार हुआ है। 2008 में जहां इंडेक्स में इसका स्थान 4.013 था जबकि 2017 में यह 4.007 हो गया। पाकिस्तान में इसकी स्थिति सबसे खराब रही। यहां 2008 के 4.089 से बड़ कर 2017 में 4.368 हो गया। यानी 0.279 प्वाइंट का इजाफा। आलोच्य दशक में आतंकवाद का प्रभहाव नाटकीय ढंग से बढ़ा है। फिर भी यह दिलचस्प है कि 60 प्रतिशत देशों में इसमें कमी भी आयी है। आतंकवाद से होने वाली मौतों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। 2007 में जहां यह संख्या केवल 11000 थी 2015 में बड़ कर 29000 हो गयी। इस आंकड़े से जाहिर होता है कि दुनिया में अगतंकवाद का खतरा तेजी से बड़ रहा है और इसे नहीं रोका गया तो हालात और बिगड़ सकते हैं। जहां तक भारत का सवाल है तो यहां अशांति का डर बहुत है और यह एक राष्ट्र के लिये खतरनाक है।       

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