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Friday, July 7, 2017

क्यों तलवार पर धार दे रहा है चीन?

क्यों तलवार पर धार दे रहा है चीन?

 इन दिनों चीन की सीमा पर काफी तनाव है और चीन लगातार भारत कोदामकियां दे रहा है कि वह 1962 का हाल ना भूले। ऐसा लग रहा है कि चीनी र्सैनिक एक तम बंदूकें वगैरह भारत की ओर तान कर बैठे हैं। बस इशारा हुआ कि फायरिंग चालू। भारतीय मीडिया में तरह-तरह की बातें चल रहीं हैं। साउथ ब्लॉक में सरगोशियां हो रहीं हैं। लगता है सचमुच खतरा है। पिछले 10 दिनों से चीन रोज ही बयान जारी कर रहा है। ये बयानात कभी वहां के विदेश मंत्रालय से आते हैं कभी सरकारी मीडिया के जरिये। हर बयान में कहा जाता है कि भारत चीन की सीमा में घुसपैठ कर रहा है या भारत , चीन ,भूटान के तिन मुहानी पर बेवजह टांग अड़ा रहा है। वैसे बीजिंग के अखबारों में खास कर वहां अंग्रेजी मीडिया में भारत के बारे विदेश मंत्रालय की दैनिक ब्रीफिंग की बड़ी खबरें शायद ही कभी दिखती हैं। यहां के सरकारी टी वी या सरकारी एजेंसी सिनहुआ में अक्सर भारत – अमरीका सम्बंध या जापान से तनाव की खबरें ही ज्यादा रहती हैं। चीन ने कुछ तस्वीरें भी जहारी की हैं भारत के घुसपैठ के सबूत के तौर पर। 1980 के बाद शायद ही कभी ऐसा हुआ। अब सवाल उठता है कि चीन आखिर क्यों इतना भड़का हुआ है? इसके कई कारण हैं। 9ान का कहना है कि भारतीय सेना ने सिक्किम में कई जगह घुसपैठ की है और यह घुसपैठ वैसी नहीं है जहैसी पहले भारत – चीन सीमा पर हुआ करती है। चीन के विदेश विभाग के प्रवक्ता का कहना है कि यह ‘घुसपैठ थोड़ी गंभीर किस्म की है।’ चीन का गुस्सा इस बात पर भी है कि चीन- भूटान विवाद पर भारत क्यों बेवजह टांग अड़ा रहा है। दरअसल वाकया कुछ इस तरह है कि भूटान अपनी सीमा में एक सड़क बना रहा था। वह सीमा चीन के साथ सटी है और जैसी कि चीन की आदत है वह हर सीमा पर कुछ ना कुछ टंटाया फसाद खड़ा कर मामले को उलझाता रहाता है। यहां भी वही हालत है। चीन का कहना है कि भूटान जहां सड़क बना रहा है वह विवादास्पद जगह है। अभी दौनों देशों में तू तू- मैं मैं चल ही रही थी कि 10जून को चीन की सेना वहां आकर अड़ गयी। बात चलती रही जब दो दिन तक मामला नहीं सुलझा तो बारतीय सेना भी वहां पहुंच गयी। क्योंकि यह जगह तीनमुहानी है जहां से एक ओर भूटान दूसरी ओर चीनि और तीसरी ओर भारत की राह जाती है। अभी मामला गरमा ही रहा थाकि मोदी जी की ट्रम्प से मुलाकात हो गयी औरट्रम्प ने एक बेल्ट एक सड़क की 14 मई की चीनी योजना पर भारत के इंकार का समर्थन कर दिया। इधर पश्चिमी क्षेत्र में डेपसांग पर चीन का विवाद कायम है। बात यही नहीं है। चीन अपनी ताकत पर भी ऐंठा हुआ है। दो साल पहले चीन ने नाथूला के विपरीत अपने क्षेत्र में याडोंग तक सड़क बनायी है। ल्हासा से नाथूला बस सात सौ किमी पड़ता है। आठ घेटे की मोटर यात्रा। यहां से ही कैलाश मानसरोवर के यात्री जाते आते हैं। यह नया रूट है। अब चीन ने सिक्किम की ओर तीनमुहानी तक अच्छी ड़क बना ली है। अब चीन की निगाह डोकलाम पर है और उस पर विवाद चल रहा है। आज नहीं तो कल वह इसे दखल कर लेगा। इसे दखल करने का अर्दा हुआ तीनमुहनी के मध्य मेंआकर चीन का बैठना। अब यह उम्मीद की जा रही है कि भूटान और भारत की जो फौजें वहां अड़ी हैं वे 16 जून के पहले वाली जगह पर लौट जाएं। लेकिन चीन ने जो शोर शराबा मचाया है खुलेआम उसके बाद शायद ही ऐसा होगा। अब यहां जो एक और दिलचस्प मसला है कि चीन ने इतिहास को कैसे तोड़ मरोड़ कर पेश किया है। कुछ लोग इस कोण से भी मामले का विश्लेषण कर रहे हैं और चीन के रवैये को सही बता रहे हैं। बीजिंग बार बार 1890 का सिक्किम तिब्बत समझौते की बात कर रहा है। इसमें माउंट जीपमोची को चीन का बताया गया है। यह क्षेत्र बाटांग ला तक फैला हुआ है जहां भारत और भूटान की वर्तमान सीमा है। विगत तीन जुलाई को चीन ने चाउ एन लाई को लिखा जवाहर लाल नेहरू का एक पत्र दुनिया के सामने रखा। इस पत्र में जवाहर लाल नेहरू ने माना था कि सिक्किम भारत के लिये चीन के तिब्बत क्षेत्र के साथ एक संरक्षित क्षेत्र है। इसे 1890 में एंग्लो- चीनी सम्मेलन में स्वीकार किया गया था और 1895 में संयुक्त रूप से निशानदेही की गयी थी। लेकिन यह पत्र अधूरा उद्धृत किया जा रहा है। चीन यह नहीं बता रहा है कि उसी पैराग्राफ में नेहरू ने इस बात का भी जिक्र किया है कि 1842 में कश्मीर , चीन के सम्राटऔर ल्हासा के लामा गुरू के बीच लद्दाख क्षेत्र में भारत चीन सीब को लेकर एक समझौता हुआ था। 1847 में चीनी सरकार ने इसे माना कि यह सही और पर्याप्त है। नेहरू ने चाऊ एन लाई से कहा था कि ‘‘आपको मालूम है कि मैक महोन रेखा भूटान के पूर्वी सीमा से पूरब की ओर बढ़ती हुई एक तरफ चीन की सीमा को रेखांकित करती है और दूसरी ओर भारत और बर्मा की सीमा को।’’ लेकिन यह गलत है सच तो यह कि यह रेखा चीन , भारत और तिब्बत के बीच 1913-14 में एक बैठक में तय की गयी थी। इस सीमांकन के समय तिब्बत के प्रतिनिधि लोंशेन शात्रा ने अपने पत्रों में साफ लिखा था कि उन्हें ल्हासा से आदेश मिला है कि वे इस सीमांकन को स्वीकार कर लें जबकि चीन ने इस समझौते को नहीं माना है।

अब दोनों देश ‘छतियाये’ हुये हैं। देखना है कि कौन पहले निगाहें झुकाता है और पीछे लौटने को तैयार होता है। खतरा यह भी​ है कि जंग हो जाय। अमरीका कारुख साफ नहीं है। आने वाले दिनों अमरीकी रुख ही एशिया के इन दोनों देशों के रुख को बदल सकता है।         

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