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Tuesday, October 3, 2017

यही है "अच्छे दिनों" की तस्वीर

यही है "अच्छे दिनों" की तस्वीर

कहाँ तो तय था चरागां हर घर के लिए

यहाँ रौशनी मयस्सर नहीं शहर भर के लिए

अच्छे दिन के वायदे पर आयी सरकार किसानो की आत्म ह्त्या,  दुर्घटनाओं और कुपोषण से होने वाली मौतों से बिलखते देश में उगते भारत से स्वच्छ भारत के बीच चहल कदमी कर रही है है. इसे कैसे बताया जाय कि मौत एक वर्तमान का खात्मा ही नहीं एक भविष्य का विनाश भी है. हमारे देश में मोदीजी की सरकार के स्वच्छ भारत का नारा तीन वर्ष में एक आन्दोलन बन गया है. यह मोदी जी का कहना है और उनका कहना है कि स्वच्छ भारत का अर्थ रोग मुक्त भारत. सुनाने में बड़ा सरल सा लगने वाला यह जुमला मनोवैज्ञानिक तौर पर एक बड़ा तिलिस्म है. रोग का भय  यानि मौत का कारण रोग और रोग का अर्थ है पीड़ा , दुःख, परेशानी इसलिए रोग का भय. हम धीरे धीरे रोग का तर्जुमा मौत के रूप में करने लगे हैं. मौत का पैमाना रोग बन गया है. बहुत से लोग दिल के दौरे से मरते हैं , डेंगू से मरते हैं, कैंसर से मरते हैं. आज किसी से बात करें वह किसी ना किसी कैंसर के मरीज को जानता होगा. बताया जाता है कि कैंसर देश में सबसे तेजी फैलती बीमारी है. इसके फ़ैलाने के कारणों की खोज चल रही है पर चिकित्सा विज्ञानियों का मानना है कि जीवन शैली और खान पान भी इसका एक कारन है. इसके बावजूद देश की 0 .15 प्रतिशत आबादी ही कैंसर से प्रभावित है और 2016 में विभिन्न रोगों से होने वाली कुल मौतों में कैंसर से मरने वालों की संख्या महज़ 8 प्रतिशत है. यह मारक है, यह तेजी से फ़ैल रहा है लेकिन यह उतना व्यापक नहीं है जितना सोचा जारहा है और जिस भयानक  तथ्य से ध्यान भटकाने की कोशिश की जा रही है वह है भारत में कुपोषण से होने वाली शारीरिक कमियाँ. भारत की 46 प्रतिशत कुपोषण से होने वाली कमियों की शिकार है. इसके बाद सबसे व्यापक है टी बी जिससे 39 प्रतिशत भारतीय प्रभावित हैं. देश में दिल की बीमारी और ब्लड प्रेशर को सबसे बड़ी और व्यापक बीमारी बताया जाता है. परन्तु दिल की बीमारी से 5.5 करोड़ लोग और ब्लड प्रेशर से 6.5 प्रतिशत लोग ही आक्रान्त हैं. मधुमेह भी बहुत ज्यादा लोगों को है पर उससे तीन प्रतिशत लोग ही मरते हैं. मेडिकल पत्रिका लैंसेट के आंकड़े बताते हैं कि भारत में इन सब बीमारियों से ज्यादा व्यापक बीमारी है कुपोषण यानि अछे स्वास्थकर खाने के अभाव के कारन होने वाली शारीरिक कमियाँ जो बीमारयों को राह देती हैं. देश के 60 करोड़ लोग यानी  46 प्रतिशत आबादी विभिन्न प्रकार की विटामिन, प्रोटीन और आयरन की कमी से आक्रान्त है. इस अभाव से सुस्ती, थकावट, कमजोरी और किसी विषय पर ध्यान से सोचने में अल्श्मता जैसे लक्षण दीखते हैं. बच्चों में यह मानसिक और शारीरिक विकास को बुरी तरह प्रभावित करता है. यह ऐसी बीमारी है जिसे पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है. अच्छा भोजन  इसका एकमात्र उपचार है.दुखद यह है कि यह बीमारी सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति और जनजाति के बच्चों में व्याप्त है. इससे बच्चों का विकास रुक जाता है. आंकड़े बताते हैं कि दलित परिवारों के 39 प्रतिशत और आदिवासी परिवारों के 34  प्रतिशत बच्चे इससे प्रभीवित हैं. इससे  पिछले एक दशक में इस बीमारी में 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई. इसके बाद नंबर है टी बी का वह छूत से फैलने वाली  बीमारी है और जो कुपोषण ग्रस्त हैं उन्हें तेजी से दबोचती है. शिक्षा के अभाव , खान पान की आदतों के प्रति जागरूकता, अस्वस्थकर घरेलू वातावरण इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है और इस अभाव को ख़त्म करना सरकार का कर्तव्य है.

 विकास और खुशहाली के बड़े बड़े वायदे कर के सत्ता में आयी सरकारें देशवासियों के एक बड़े भाग के लिए भरपेट भोजन का बंदोबस्त नहीं कर पाती है और विदेशों में जाकर विकास तथा खुशहाली की बड़ी बड़ी बातें करती है.

मिलती नहीं कमीज़ तो पाओं  से पेट ढँक लेंगे

कितने मुनासिब हैं ये लोग इस सफ़र के लिए.   

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