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Tuesday, November 14, 2017

आंखों से दूर रहते हैं सपने 

आंखों से दूर रहते हैं सपने 

कहते हैं न कि कोई शहर या इलाका वहां के बाशिंदों की रगों में दौड़ता है और वह अक्सर उसके सपने देखता हे। मनोविज्ञान में स्वपनशास्त्र की स्थापना की गयी। इसलिये नीतीश कुमार मानते हैं कि बिहार अपनी  सामूहिक चेतना के स्वप्न में उन्हें  एक समाज सुधारक के रुप में देखता है। लालू माने हैं कि उनहें लोग अपने ख्यालों में दलितों और वंचितों की आवाज मानते हैं। तेजस्वी यादव मानते हैं कि वे एक चमत्कारी नेता हैं और एक ना इक दिन मुख्यमंत्री होंगे। भाजपा मानती​ है कि वह जल्दी ही राज्य का शासन संभालेगी। लेकिन बिहार के लोग यह नहीं कल्पना कर पा रहे हैं कि उनका भविष्य कैसा होगा। यह बड़ा कठिन सवाल है खास कर उस धरती पर जहां जिंदगी की कठोर हकीकतें सपनों को अक्सर लील जाती है।  सदा एकाकी स्वप्न होते हैं चाहे वह सपने वर्ग नेतृत्व के हों या कामकाज या रोजगार के हों या जीवन की मर्याथदा के हों। इनसे जुड़े स्वप्न अलग अलग लोग अलग अलग ढंग से देखते हैं। बिहार की समग्र चेतना के समन्वित स्वप्न को समझ पाना बड़ा मुश्किल है। क्योंकि बिहारी शिनाख्त बुरी तरह विभाजित है। एक ब्राह्मण बिहारी एक दलित बिहारी के लिये दूसरी दुनिया का आदमी है। कुछ बिहारी अपने बच्चों को बहतर शिक्षा दिलाने का सपना देखते हैं तो कुछ इस तरह के सपने से डरे हुये दिखते हैं। वे केवल एक ही सपना देखते हैं कि दूसरे दिन कोई उन्हें या उनके बच्चो- बहू -बेटियों को गाली ना दे या जाति के झगड़े में उनके घर पर हमला ना हो जाये या बेटे का सरे बाजार पीट ना दिया जाय। बिहार में झगड़े के कई कारण हैं जैसे जाति, वर्ग या लिंग या फिर और कुछ। यहसां तक कि बहुतों अपने अपने आदरणीय  गुंडे हैं या नेता हैं। उनके लिये लोग मार काट मचा देते हैं। अब ऐसे में अगर आपका शासक कोई ऐसा हो जो ण्आपके होश संभालने से पहले से हे ओर अभी कायम है तो सपने देखना ओर नकठिन हो जाता है। बिहार का मुकद्दर उनके विचारों या पूर्वग्रहों पर निर्भर है। जब कोई जातीय वर्चसव या करप्शन की बात आती है तो लोग इसे जीवन का अंश्ग् समझ कर चुप हो जाते हैं। कई बार विकाशस के नाम पर चरवाहा विद्यालय जैसी छिछोरी क्रियाओं के पछिे पड़े रहते हैं ओर राज्य से बाहर जाकर केवल इसलिये कमाते हैं कि वहां के अपराधी , बाबू और नेता अपनी झोली भर सकें। वहां कई तरह की सरकारें हैं जैसे कलक्टर साहब , एम एल ए साहब, थानेदार साहब , ठेकेदार साहब , दबंग साहब, इंजिनीयर साहब , पत्रकार साहब इत्यादि इत्यादि। बिहार में शासको की कभी कमी नहीं रही चाहे शासन जिसका हो। जब जीवन तात्कालिक मुश्किलों से पटा पड़ा हो तबल भी सपने देखना दंविार होता है। मसलन, जब यह किसी को मालूम नहीं कि अगले सीजन में काम मिलेगा या नहीं, बीमार पड़ने पर अस्पताल का खर्च उठा पायेगा या नहीं या, बच्चे को स्कूल में दाखिला दिला पायेगा या नहीं ,  तब वह क्या सपना देखेगा। सपने में रोटी का आतंक होगा और परिवार के आंसू होंगे, घिघीयाता साा अनि​िश्चत भविष्य होगा। लगातार अपमानित होते रहने और सदा किसी के निशाने पर बने रहने वाले कैसे मर्यादित हो सकते हैं। बिहार के लोग बेहद मेहनती होते हैं और जब अपनी मेहनत के भरोसे बड़े शहर में जाते हैं तो वहां स्थानीय लोगों के रोजगार हड़पने का तोहमत उनपर लग जाता है। उनका अपराध है कि वे गरीब हैं। अगर वह बीमार होकर एम्स में आता है तो कहा जाता है कि उसने भीड़ बढ़ा दी। बिहारियो का यह कर मजाक उड़ाया जाता कि वे बोलना, सलूक करना या पहनना नहीं  जानते। एक बिहारी का मजाक उड़ाया जाता है इसलिये कि वह गरीब है और राजगार की तलाश में आया है। एक वे दिन भी थे जब बिहारी कोलकाता , दिल्ली ओर मुम्बई की मिलों में, कल कारखानों में रोजाना 14 घंटे बी काम करते थे। तब लोग कहते थे कि देखो बिहारी कितने कर्मठ हैं। ये जरूर तरक्की करेंगे। इसी में कोई व्यंग्य करता कि तरक्की करें किसने रोका है। यकीनन यही सवाल है कि किसने रोका है? बिहारियों को एक बेहतर जीवन का सपना देखने से किसने रोका है? यह सच है कि इन दिनों बिहार में शिक्षा प्रणाली सिफर है, स्वास्थ्य व्यवस्था अविश्वसनीय है। यह भी सच है करिाज्य में अपने वासियों के लिये निम्नतम रोजगार की व्यवस्था नहीं है। अगर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से शिक्षा, स्वास्थ्य ओर निम्नतम रोजगार के बार में पूछें तो वे कहेंगे सबकुछ अच्छा है। उन्होंने बाल विवाह , दहेज प्रथा और अन्य कुरीनियों को मिटा दिया है। पर सच तो यह है कि आम बिहारी इन सबसे लगातार जूझ रहहा है। अगर लालू प्रसाद से पूछें कि दलितों के बच्चों के लिये कुछ बदला है या सड़कें अच्छी हैं तो उनसे साफ जवाब नहीं मिलेगा। सच तो यह है कि आम बिहारी ऐसे सवाल पूछते ही नहीं। 

चंद ख्वाब अबी भी जीवित है जैसे सुपर 30 की परिणाम या सीविल परीक्षाओं में बिहारियों की उपल​ब्धि इत्यादि, लेकिन अधिकांश सपने टूटकर बिखर जाते हैं। खासकर उस समय जब यह सुनने को मिलता है कि किसी जगह दलितों की झोपड़ियां फूंक दी गयी या किसी लड़की का स्कूल से आते समय बलात्कार हो गया। सपने सदा उनकी आंखों से  दूर रहते हैं क्योकि वहां के नेता उन्हें सपनो के सागर में इतना डुबोते हैं कि उन्हें ख्वााब के नाम से नफरत हहो जाती है। मोदी जी के अच्छे दिन के सपने को कुछ इसी तरह राष्ट्र ने देखा है।   

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