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Sunday, January 21, 2018

अच्छे दिन " कैसे आएंगें

"अच्छे दिन " कैसे आएंगें
गरचे, सभी लोग अर्थव्यवस्था को लेकर चिंतित हैं और मोदी सरकार लगातार कह रही है सब कुछ नियंत्रण में है तो फिर क्या बात है, सच क्या है?
पिछले साल नवंबर में जीएसटी की वसूली 80,808 करोड़ हो गई जबकि अक्टूबर में यह 83,346 करोड़  थी जीएसटी पिछले साल जुलाई में लागू हुआ था और उस वर्ष उसी महीने में लगभग 93,283 करोड़ रुपए की वसूली हुई थी। इसके बाद वसूली लगातार घटती गई । अगस्त में यह 90,669 करोड़ हो गई तथा सितंबर में थोड़ी सी बढ़कर 92,150 करोड़ हो गई । इस बीच मोदी सरकार ने निश्चय किया कि जीएसटी कर दरों में कमी कर दी जाए और 178 वस्तुओं के करों में कमी कर दी गई ।  इसका मतलब है इस सरकार ने राजस्व घाटे के बावजूद जीएसटी के दरों में कमी की। यह स्पष्ट जाहिर है कि केंद्र ने जैसा चाहा था वैसा हो नहीं रहा है। व्यापारिक समुदाय बहुत कठिनाई महसूस कर रहा है । अब कुछ बड़ा करने की जरूरत महसूस हो रही है । व्यापारियों को जीएसटी में जो रियायत दी गई , खासकर गुजरात चुनाव के पहले ,वह संतोषजनक नहीं महसूस हुई और नतीजा यह हुआ कि बीजेपी की सीटें गुजरात में कम हो गई ।  केंद्र और राज्य सरकारों को  होने वाले राजस्व में कमी आई है । कहीं न कहीं कुछ गलत तो हुआ है । हलांकि इसे लेकर भाजपा सरकार बहुत बड़ी-बड़ी बातें करती थी । बातों यह सिलसिला यहीं  नहीं खत्म हुआ है । नोटबंदी को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बहुत उत्साहित थे लेकिन उसका कोई सुफल नहीं प्राप्त हो सका।  जैसा कि, सरकार ने दावा किया था वैसा नहीं हो हुआ।   उत्तर प्रदेश में मोदी जी ने मतदाताओं को आश्वासन दिया था कि उनके खाते में 15 -15 लाख रुपए जमा करा दिए जाएंगे, लेकिन हो नहीं सका। नोट बंदी का ही क्या हुआ? काला धन कितना है यह सरकार को मालूम नहीं है उल्टे नोटबंदी के कारण चल रहे 86 प्रतिशत नोट फंस गए। सरकार का कोई भी कदम इसे सुधार नहीं सका। आंकड़े बताते हैं कि औद्योगिक उत्पादन सूचकांक अक्टूबर 2016 में 4.2 था वह 1 वर्ष बाद अक्टूबर 2017 में गिरकर 2.2 प्रतिशत हो गया और अन्य उद्योगों पर  इसका व्यापक प्रभाव पड़ा। व्यापारिक मोर्चे पर भी हालात बहुत अच्छे नहीं है 2016 नवंबर में व्यापारिक घाटा 13.4 बिलियन डालर  था जो 2017 के नवंबर में बढ़कर 13.8 बिलियन डालर हो गया। दूसरे शब्दों में ,व्यापारिक घाटा आयात में वृद्धि नहीं होने के कारण हुआ। अर्थव्यवस्था पर लगातार तनाव बढ़ता रहा। मोदी जी का " मेक इन इंडिया " असफल हो गया। चिंता की एक और बात है कि तेल का आयात रोज-रोज महंगा होता जा रहा है ।2017 के नवंबर में यह 39.1 प्रतिशत बढ़ कर 9.6 अरब डालर हो गया था । इसके कारण वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेट्रोल और डीजल पर से जो 2रूपये प्रति लीटर की दर से दाम घटाया था ,उसे वापस ले लिया।  इसका अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ा। सरकार चाहती थी कि तेल को भी जीएसटी के तहत लाया जाए लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकी। सरकार अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की गिरी कीमतों का लाभ ले रही थी ।कीमतें बढ़ने के कारण वह लाभ खत्म हो गया, उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में पेट्रोल की कीमत 79 रूपये प्रति लीटर है जो  जो खरीद में 29रूपये लीटर पड़ता था।  सरकार को 50 रूपये प्रति लीटर का लाभ होता था । यह लाभ राज्यवार अलग-अलग था, लेकिन सभी मामलों में केंद्र सरकार को भारी लाभ होता था। तेल की कीमतों में वृद्धि का असर सीधे साधारण उपभोक्ताओं पर भी पड़ा।  माल भाड़ा भी बढ़ गया। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में मुद्रास्फीति के आंकड़े बताते हैं कि वह 2016 में यह 3.6 थी जबकि नवंबर 2017 में बढ़कर 4.9 प्रतिशत हो गयी। इसी तरह थोक मूल्य सूचकांक भी बढ़  गया। यह नवंबर 2016 में 3.15 था जो 2017 में बढ़कर 3.93 हो गया। जो हो आंकड़े उत्साहजनक नहीं हैं। तेल की कीमतों से मुनाफा कमाने के जरिए राजस्व बढ़ाने के चक्कर में सरकार ने महंगाई बढ़ा दी। गरीब और मध्यवर्गीय लोग अपनी आमदनी गवां बैठे। नतीजा यह हुआ कि ना वे खरीद कर पा रहे हैं निवेश कर पा रहे हैं। भारत की अर्थव्यवस्था की हालत है खराब होती जा रही है। यकीनन मोदी सरकार ऐसा नहीं  चाहा था। अब जो लोग अर्थव्यवस्था की आलोचना करते हैं सरकार और उनके समर्थक उन पर भड़क जाते हैं। सरकार को यह बताना कठिन है रिजर्व बैंक ने भी विकास को कम बताया है। रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि  मंदी के कारण चालू वित्त वर्ष में विकास के आंकड़े 7.3% से घटकर 6.7 प्रतिशत हो गये हैं। यह आंकड़ा 2017 -18 के पहले तिमाही का है। जबकि खरीफ के उत्पादन में वृद्धि हुई है और यह  जीएसटी पर असर डालेगा । जिस दिन रिजर्व बैंक ने आंकड़े पेश किए थे उसी दिन प्रधानमंत्री ने कहा कि अर्थव्यवस्था में सब कुछ ठीक-ठाक है । प्रधानमंत्री ने दावा किया की  सकल घरेलू उत्पाद पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में 8 बार 5.7 प्रतिशत तक पहुंच चुका था। यह तुलना सही नहीं है । क्योंकि, जीडीपी के आकलन की जो विधि है वह जनवरी 2015 से बदल चुकी है और ऐसा पूर्ववर्ती सरकार के काल में नहीं था। सरकार बार-बार कह रही है की हमारी अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से बढ़ रही है लेकिन अन्य देशों की तुलना में हमारे यहां निवेश लगातार कम होता जा रहा है । आज हालात यह हैं कि हमारी आर्थिक  गतिविधियां प्रभावित हो रहीं हैं।  सरकार पूंजी तैयार नहीं कर पा रही है, बैंक क्रेडिट में सुधार नहीं हो रहा है ,रोजगार नहीं प
बढ़ रहे हैं ।किसी भी देश का राजनीतिक भविष्य उसकी अर्थव्यवस्था पर निर्भर करता है, बातों पर नहीं । अगर मोदी जी सकल घरेलू उत्पाद के मामले में सही बोल रहे हैं तो वह घोषणा करें कि रिजर्व बैंक के आंकड़े गलत हैं।

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