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Thursday, January 4, 2018

भयभीत ना हों तो अच्छा

भयभीत ना हों तो अच्छा

पिछला साल झटके खाते ही गुजरा। नोटबंदी, खाली ए टी एम, मजदूरों की अनौपचारिक क्षत्र से शहरों से वापसी , जी एस टी ओर अन्य कई झटके लगे हमारी अर्थव्यवस्था को। इसका असर आम आदमी पर ऐसा पड़ा कि वह अभी तक इससे उबर नहीं पाया है। अर्थ व्यवस्था के विकास के चाहे जितने बड़े-बड़े दावे किये जाएं पर सच तो यह है कि सरकार को विदेशों से 50000 करोड़ डालर का कर्ज लेना होगा क्योंकि जी एस टी के कारण टैक्स की वसूली उम्मीद के अनुरूप नहीं हो पायी है। जबसे जी एस टी लागू हुआ तबसे अब तक राजस्व की वसूली 80,808 करोड़ कम हो गयी। यह सब भारतीय अर्थव्यवस्था की खस्ताहाली के निशान हैं। सरकार ने चीन की आर्थिक क्षमता के उत्तर दंने के लिये "मेक इन इंडिया " सहित कई योजनाओं को लागू किया। लेकिन सरकारी नीतियों की बतरतीबी का नमूना देखिये कि जब रेलवे मंत्रालय को देसी उत्पादकों को बड़ावा देने की बात आयी तो सरकार के संयुक्त क्षेत्र के एक अमरीकी कम्पनी से  1000 हजार डीजल इंजन  खरीदने का फैसला बदलना पड़ा। सरकार ने घोषणा की कि रेलवे में यदि धीरे - धीरे डीजल इंजन बंद कर दिया जाय इससे 10 साल में तेल और रखरखाव के खर्चे के बावत 1 लाख करोड़ रुपये की बचत होगी। यह सुझाव अमरीकी कम्पनी को नागवार लगा। दरअसल वह अमरीकी कम्पनी सरकार के साथ मिल कर भारत में डीजल इंजन का उत्पादन करती है। इसका उत्पादन बंद होने से रोजगार कम हो जायेंगे। एक रपट के मुताबिक हमारे देश में हर साल 1 करोड़ 20 लाख लोग काम के लायक हो जाते हैं।पर रोजगार इनमें से बहुत कम लोगों को मिलता है। प्रधानमंत्री ने वादा किया था कि वह हर साल 1 करोड़ लोगों को रोजगार देंगे। लेकिन यह कटु सत्य है पत्त्धानमंत्री ऐसा करने में नाकामयाब हो गये। एक सर्वे के अनुसार उत्पादन क्षेत्र में लगभग 40 प्रतिशत रोजगार की कमी होगी। निर्माण क्षेत्र की हालत बहुत समय से खराब है औरइस पर बात ना ही की जाय तो अच्छा है। देश के आई टी उदोग में भी 2017 में भारी छंटनी हुई है। यह सही है कि पहले जिस तरह के रोजगार थे वे आज से बिल्कुल अलग थे। ... और आज अधिकांश लोग स्वरोजगार में लगे हैं। इस दलील से भी संतोष नहीं होता है।   भारत में श्रम का बहुत बड़ा बाजार है मसलन निर्माण , कृषि और भारी उद्योग। भारत में रोजगार की हालत इतनी ज्यादा खराब है कि सब्रमणियम स्वामी जैसे भग्कात भी सरकार की आलोचना करने लगे हैं। वे कहने लगे हैं कि " अर्थ व्यवस्था धीमी हो रही है और मंदी की ओर बढ़ रही है और मंदी का शिकार हो जायेगी। " इसके अलावा नये भारत को जो नये तथ्य क्रोधित कर रहे हैं उनमें से भूख से होने वाली मौते भी एक हैं। कई ऐसे भगौलिक त्रेत्र हैं जहां खाने के लाले पब्ड़ रहे हैं और गिरती अर्थ व्यवस्था में इन क्षेत्रों का विस्तार होगा। इन बातों कोउठघ्ने वालों की मुश्कें कस देने के लिये लोग तैयार हैं। 

 जो लोग अभी भी सांविधानिक और सांस्कृतिक मूल्यों से बंधे हैं उनके लिये जीवन आने वाले दिनों में कठिनतर होने वाला है। जुबान बंद कर देने की कोशिशों का भय सामाजिक व्यवस्थाहीनता और आर्थिक दूरी को बढ़ायेगा।इसलिये भय को आपके भीतर प्रवेश करने से रोकना होगा। 

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