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Tuesday, February 13, 2018

खालिदा जिया की सजा का मतलब

खालिदा जिया की सजा का मतलब

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया को ढाका की अदालत ने 5 साल की सजा सुनाई है और इस सजा में बांग्लादेश को एक गंभीर राजनीतिक संकट में डाल दिया है । इसके बाद  से कुछ भी हो रहा है उसके बड़े दिलचस्प परिणाम हो सकते हैं भविष्य में। क्योंकि इस साल के आखिर तक बांग्लादेश में संसदीय चुनाव होने वाले हैं । इस घटना पर सत्तारूढ़ अवामी लीग पार्टी के समर्थकों ने जश्न मनाया।  बांग्लादेश का इतिहास देखते हुए इस घटना की , खास करके इसके राजनीतिक परिदृश्य की एवं प्रतिफल की गंभीर समीक्षा की जरूरत है।   जो भी हो रहा है वह सब चुनाव के कुछ ही पहले हो रहा है । 

     भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के इतिहास को देखते हुए ऐसा लगता है कि कैद के बाद  राजनीतिक नेताओं की लोकप्रियता बढ़ जाती है । इंदिरा गांधी, बेनजीर भुट्टो, शेख हसीना के उदाहरण सबके सामने हैं।  इसी कारण खालिदा जिया एकदम खारिज नहीं किया जा सकता या  मामले को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वह और उनकी पार्टी हो सकता है चुनाव में जीत की जाए। यह दूसरी बात है ,उसे बहुत ज्यादा बहुमत नहीं मिलेगा लेकिन अच्छी उपस्थिति तो दिखेगी ही। इस उपस्थिति से अवामी लीग के लिए संकट भी पैदा हो जाए।  संक्षेप में कहें तो हाल के इस फैसले ने खालिदा जिया को एक तरह से हीरो बना दिया है। इसका उदाहरण फैसले के समय अदालत में जमा उनके समर्थकों भारी भीड़ और 2 महीने पहले विदेश से लौटने पर हवाई अड्डे पर उनके समर्थकों का जमघट से मिल सकता है। यह उनका व्यक्तिगत करिश्मा ही कहा जा सकता है।  करिश्मा अब  धीरे-धीरे छीज रहा है पर खत्म नहीं हुआ है । उनके समर्थकों में गुस्सा साफ झलक रहा है । फैसले के बाद के दो-तीन  दिनों में बांग्लादेश में जो हिंसक घटनाएं हुईं, मारपीट हुआ वह  एक जमीनी हकीकत है। बांग्लादेश की राजनीति जो समझते है वे आश्वस्त  हैं कि अगर सही ढंग से चुनाव हुए तो वर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद भारी मतों से विजय होंगी। इस बीच, खास करके खालिदा जिया के जेल जाने के बाद से ऐसा महसूस हो रहा है कि उन्हें राजनीति और आर्थिक तौर पर पाकिस्तान से भारी मदद मिल सकती है।   उनकी सियासत का रोड मैप पाकिस्तान स्थित ताकतें तैयार कर रही है।  खालिदा जिया भारत समर्थक नहीं है उनके सत्ता में आने के बाद भारत के दोनों तरफ पूर्वी और पश्चिमी किनारों पर विरोधी मानसिकता वाली सरकार रहेगी । ऐसी स्थिति में बांग्लादेश के राजनीतक  परिदृश्य पर सोचना जरूरी है खासकर भारत के संदर्भ में । बंगलादेश   नेशनलिस्ट पार्टी सत्ता में आती  है तो क्या ह़ो सकता है।

भारत के पाकिस्तान समर्थक तत्वों को भी खालिदा जिया की पार्टी की तरफ से मदद के लिए संदेशे मिलने लगे हैं। खालिदा जिया के कार्यकाल का अगर विश्लेषण करें तो 1991-96  और 2001- 2106 के बीच उनका शासन भारत समर्थक नहीं रहा था। भारतीय आतंकवादियों को वहां शरण मिलती थी। बांग्लादेश की जमीन से भारत विरोधी कार्यवाहियां होती थीं। यही नहीं, खालिदा सरकार  धुर दक्षिणपंथी जमात-ए-इस्लामी को समर्थन देती थी जो भारत में सांप्रदायिक तत्वों को बढ़ावा देता है। इससे बांग्लादेश के भी विचारक और सुधी लोग चिंतित रहते थे। इतना ही नहीं भारत से भागे हुए आतंकवादी या पश्चिमी एशिया से भगोड़े आतंकवादियों को खालिदा के पुत्र तारिक रहमान शरण देते थे ताकि वे तत्व भारत के आर्थिक और सुरक्षा हितों को हानि पहुंचा सकें।  भारत की जनता  एवं सरकार नहीं चाहेगी कि बीएनपी या खालिदा जिया सत्ता में आए। यही नहीं अगर खालिदा सत्ता में आती हैं  या चुनाव प्रचार में जुट जाती हैं तो वे तिस्ता और गंगा बांध पर समझौता करने के लिए गुटबंदी चालू कर देंगी।  वे इस मामले में भारत को अलग-थलग करने की कोशिश करेंगी।  यहां यह स्मरणीय है कि खालिदा जिया के दिवंगत पति पूर्व राष्ट्रपति जियाउर्रहमान सार्क के गठन करने वालों में से थे। बांग्लादेश के कानून के अनुसार अगर किसी को कम से कम 2 वर्ष की सजा होती है तो वह चुनाव लड़ने के लिए अगले 5 साल तक अयोग्य घोषित हो जाएगा। खालिदा जिया पर इस समय पैंतीस मामले चल रहे हैं और सबसे गंभीर मामला है  एक अनाथालय से भारी रकम का गबन करने का है।  उनके चारों तरफ कानूनी जाल बिछा हुआ है जिस से निकलना उनके लिए कठिन है । इस बीच, अगर उन्हें चुनाव नहीं लड़ने नहीं दिया गया तो   वे अपनी जगह मिर्जा इस्लाम आलमगीर या अमीर खुसरो महमूद को पार्टी का अध्यक्ष बनाने की तैयारी में हैं। खालिदा जिया की गैरहाजिरी में अगर चुनाव होते हैं तो यकीनन बीएनपी उन्हीं रास्तों पर चलेगी जो भारत विरोधी हैं और जो खालिदा जिया ने तैयार किया  है।  बांग्लादेश की अन्य राजनीतिक पार्टियां जैसे जातीय पार्टी भी चुनाव में जोर  आजमाने और अपनी जगह बनाने की तैयारी में है। यह पार्टी पूर्व राष्ट्रपति एच एम इरशाद की है। वह भी राजनीतिक अज्ञातवास से बाहर आने के लिए कमर कस रहे हैं ।उन्हें वहां की सेना का भी समर्थन है।  हाल में जब भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी बांग्लादेश यात्रा पर आये थे तो इरशाद उनके साथ दिखाई पड़ रहे थे। इस तरह के राजनीतिक मंच भारत के लिए ना के बराबर हैं। लेकिन अगर कोई विकल्प की बात  है तो अभी  किसी भी विकल्प के बारे मे बात   करना मुश्किल है। केवल शेख हसीना और उनकी पार्टी इस लायक है कि भारत उनका समर्थन करे। क्योंकि भारत विरोधी ताकतों को हाशिए पर खड़ा करने के लिए यह मुफीद है।   फिर भी शेख हसीना के सामने कठिनाइयां तो है और दोबारा सत्ता में आने के लिए उन्हें फूंक- फूंक कर कदम रखने होंगे।

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