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Friday, February 9, 2018

ये दावे भरमाने  वाले हैं

ये दावे भरमाने  वाले हैं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसद में 7 फरवरी को भाषण बहुतों ने सुना होगा। उसमें प्रधानमंत्री ने नेहरू- गांधी परिवार पर जमकर तंज किया और कहा कि अगर सरदार पटेल पहले प्रधानमंत्री हो गए रहते तो कश्मीर का लफड़ा ही खत्म हो गया रहता।  इतिहास में उसका कोई सबूत नहीं मिलता । इस मामले में आगे बढ़ने से पहले थोड़ा सा प्रसंग बदलते हैं ।जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सत्तासीन हुए ,वाशिंगटन पोस्ट ने  लिखा कि , उन्होंने अपने शासन. के पहले साल के अंत तक यानी जब से वे रिपब्लिकन प्रतिनिधि बने हैं तब से उस समय तक  वाइट हाउस में  आने के साल भर तक  उन्होंने 2,140 झूठ बोले। अब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कोई अभिनेता तो है नहीं कि मंच पर तरह-तरह के लतीफे कहेंगे या गलत समाचारों के वेबसाइट के संस्थापक तो  हैं  नहीं। वे तो दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र के प्रमुख हैं और उनके हाथ में परमाणु बटन है जिससे कुछ ही सेकंड में संपूर्ण विश्व का विनाश हो सकता है।  इस स्तर का आदमी "ऑन द रिकॉर्ड" गलत बोलता है । ऐसे में उन पर भरोसा करना मुश्किल है। यह निरा संयोग है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का अगुआ भी उसी रास्ते पर जा रहा है। अवांतर सत्य का दामन पकड़ रहा है।  
      राजनीतिज्ञों के बारे में यह कहना उचित होगा कि हर बात को एक अन्य निगाह से  देखते हैं । उनका अर्थ बदल देते हैं। उनकी इसी बात को मीडिया औंर सोशल मीडिया में डाल दिया जाता है।  यह गलत सूचना के साथ चारों तरफ फैलने लगता है, इतिहास अर्थ बदलने लगते हैं । यहां  एक महत्वपूर्ण प्रश्न है कि क्या हम एक राष्ट्र के रूप में इतने सुस्त और बेजान हैं कि  इतिहास की गलत व्याख्या गलत इरादे से गढ़े  समाचारों का  खंडन  करने की कोशिश नहीं करते ? चुपचाप क्यों इसे स्वीकार कर लेते हैं ? भूसे से गेहूं को अलग क्यों नहीं करते ?  देश की आम जनता ने विरोध   करना छोड़ दिया है या लोगों का विरोध खत्म हो गया है ? इसके परिणाम भयानक हो सकते हैं । जरा ध्यान से सोचिए , मई 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए और उस समय से जवाहरलाल नेहरु को निशाना बनाया जाने लगा । नेहरू भाजपा के निशाने पर अरसे से थे लेकिन लेकिन मोदी जी के बाद इसमें तेजी आ गई।  बंगाल में चुनाव 2016 में हुए । उसके पहले तक लगभग एक अभियान था कि नेताजी की मृत्यु की बात को नेहरू छिपा रहे हैं । इसके लिए कई तरह के इतिहासकारों के बयान आए मीडिया में ।  एक अभियान चला।  यहां तक कहा गया कि नेताजी ने भी नेहरु के खिलाफ अभियान शुरू किया था । हैरत की बात है कि देश के सबसे बड़े  और दूरदर्शी नेता सुभाष चंद बोस को इतने गलत ढंग से पेश किया जा रहा है।  यह बात फैलाने की कोशिश की जा रही थो कि नेहरू को  नेताजी से भय था। उनकी लोकप्रियता से नेहरू घबराते थे और उनसे व्यक्तिगत प्रतिद्वंद्वी समझते थे । इसलिए नेहरू ने  उन्हें साजिश रच कर मरवा दिया।  एक फर्जी चिट्ठी भी सामने आई  जिसे कथित रूप में  नेहरू ने लिखा था और उसमें नेता जी को  'युद्ध अपराधी ' कहा था । यह सफेद झूठ था लेकिन कौन ध्यान देता है। अब  7 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में कहा, सरदार पटेल प्रथम प्रधानमंत्री हुए होते तो कश्मीर हमारा होता उसका झंझट ही खत्म हो गया होता । जबकि  विशेषज्ञों का मानना है कि पटेल कश्मीर को भारत में शामिल करने के इच्छुक ही नहीं थे। इतिहासकार श्रीनाथ राघवन ने लिखा है एक वक्त ऐसा भी आया था जब जूनागढ़ और हैदराबाद को भारत में जोड़ने  के बदले पाकिस्तान को कश्मीर देने के लिए पटेल तैयार हो गए थे।  
मोदी जी ने राजनीतिक नैतिकता को ताक पर रखकर गांधी और नेहरू परिवार पर हमले करने के लिए नए-नए उदाहरण शुरू किए। सियासत हमेशा धारणाओं  निर्देशित- संचालित  होती है। सोशल मीडिया के इस भयानक युग में धारणाओं को बदलना कितना आसान है सब जानते हैं । कोई सुरक्षित नहीं है । किसी के खिलाफ आरोप प्रचारित  किया जा सकता है। 
अब आंकड़ों की ही बात लें। प्रधानमंत्री ने लोकसभा में भाषण में बैंकिंग सिस्टम में बढ़ते एन पी ए के दबाव के लिए कांग्रेस की यूपीए सरकार को दोषी ठहराया। उन्होंने कहा कि "यूपीए ने देश को बताया है कि 2014 में एनपीए 36% था।  हमने 2014 साल के आंकड़े  देखे, कागजात खंगाले तो पाया कि आपने जो देश को  बताया था वह गलत था। एन आंड़का 82 परसेंट था।" जबकि सच्चाई है कि आंकड़े भी उन्होंने गलत बताए। उस वर्ष आंकड़ा 36 प्रतिशत नहीं था बल्कि 3.6% था और 83 प्रतिशत भी नहीं था वह 8.2% था । यही नहीं ,मोदी जी दावोस में भी गलत बोल गए थे। उन्होंने कहा था कि भारत में मतदाताओं  600 करोड़ है जबकि यह सही नहीं है।
इसमें सबसे  खतरनाक है कि यह  प्रक्रिया हमारे राजनीतिक ढांचे को बहुत बुरी तरह बिगाड़ सकती है। जवाहरलाल नेहरू ,नेताजी इत्यादि नेताओं को लेकर इतने तरह के तथ्य आज हमारे सामने हैं कि आम आदमी समझ नहीं पाता कि कौन सच्चा कौन झूठा।  नेहरू और नेताजी  में तनाव होता तो नेताजी ने कभी भी अपनी इंडियन नेशनल आर्मी की एक ब्रिगेड का नाम नेहरू ब्रिगेड नहीं रखा होता और ना आइ एन ए के  जवानों को सजा से बचाने के लिए नेहरू बैरिस्टर का चोला पहनकर कोर्ट में खड़े होते। आवांतर तथ्यों के बल पर भारत को भरमाने की यह  शातिर चाल है। देश  इस पर ध्यान नहीं दे रहा है।

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