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Tuesday, March 20, 2018

जनरल साहब गुस्से में क्यों हैं

जनरल साहब गुस्से में क्यों हैं 
भारत के थल सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ऐसे लोगों में से नहीं हैं जो आमतौर पर चीन की प्रशंसा करते हैं । लेकिन पिछले हफ्ते दिल्ली में एक समारोह में अपने भाषण में जनरल रावत ने बड़े शिकायती अंदाज में कहा कि भारत को चीन से सीखना चाहिए। उन्होंने चीन की तारीफ की और कहा कि उसने सैन्य शक्ति और आर्थिक विकास   की  तेज रफ्तार  दोनों हासिल कर ली है। उनकी दलील थी कि भारत को भी वैसा ही करना चाहिए। भारत को अपने सैन्य व्यय को बढ़ाना चाहिए और ऐसा वातावरण तैयार करना चाहिए ताकि आर्थिक विकास हो सके।  सेना के उप प्रमुख ने भी संसदीय समिति से शिकायत की है इस वर्ष बजट आवंटन में कमी कर दी गई है और इससे फौज के खर्चे नहीं पूरे होंगे। क्या बात समझ में नहीं आती है क्योंकि सेना और  आवंटन की गुजारिश कर रही है। जहां तक आंकड़ों का सवाल है तो जनरल साहब को यह समझना चाहिए कि अपने  सकल घरेलू उत्पाद का1.9% सेना पर खर्च करता है जबकि भारत अपने जीडीपी का   2.5 प्रतिशत   व्यय करता है। भारत का सेना पर अपने सकल घरेलू  उत्पाद का 2.5%  व्यय किया जाना  वैश्विक औसत से कहीं ज्यादा है। सेना पर  व्यय  का वैश्विक  औसत 2.2 प्रतिशत है। जनरल रावत  सिर्फ यह देख रहे हैं कि भारत   सेना पर  केवल 55 अरब डालर खर्च करता है  जबकि चीन225 अरब डालर ।वह यह भूल जाते हैं की भारत का सकल घरेलू उत्पाद 2.2  खरब डॉलर है  जबकि चीन का सकल घरेलू उत्पाद  11.2  खरब डॉलर है । एक तरफ भारतीय जनरल बजट में कम आवंटन का रोना रो रहे हैं दूसरी तरफ स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च ने बड़े हथियार आयात के आंकड़े जारी किए हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक भारत पिछले 5 वर्षों में बड़े हथियारों का दुनिया का सबसे बड़ा आयातक रहा है।  दुनिया में  जितने  बड़े हथियार  आयात किए जाते हैं उनका 12% केवल भारत आयात करता है ।भारत का पिछले 5 वर्षों में हथियार आयात 24% बढ़ा है। अमेरिकी हथियार उत्पादक भारत के सबसे बड़े सप्लायर हैं यहां से पिछले 5 वर्षों में 5 गुना ज्यादा हथियार आयात किए गए हैं। एक तरफ भारत का हथियार आयात बढ़़ा है दूसरी तरफ पाकिस्तान का, जिससे भारत ने सबसे ज्यादा लड़ाइयां लड़ी हैं ,आयात घटा है। इस अवधि में पाकिस्तान से आयात लगभग 36% घट गया है।  अब सवाल उठता है कि भारतीय सेना बजट के कम आवंटन का रोना क्यों रो रही है ?

 मीडिया का एक शक्तिशाली  गुट  लगातार स्यापा करता रहता है कि भारत  विदेशों से कम हथियार मंगा रहा है और जो मंगा भी रहा है उसके मंगाने की दर बहुत धीमी है लेकिन सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पिछले 5 वर्षों में ही नहीं इस सदी के आरंभ से हथियारों की आयात बहुत ज्यादा बढ़ी है और भारत दुनिया में सबसे बड़ा  खरीदार है। सन 2000 से अब तक यानी 18 वर्षों में भारत  ने 46.8 अरब  डॉलर का हथियार खरीदा है जबकि इसी अवधि में चीन ने मात्र 35 अरब डालर  की खरीद की है।  पाकिस्तान जब भी कोई हथियार खरीदता है तो भारत में सनसनी फैल जाती है लेकिन इसी अवधि में पाकिस्तान ने विदेशी बाजार से मात्र14.4 अरब डॉलर के हथियार खरीदे हैं।

        

दरअसल, भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना को लेकर चिंतित नहीं है बल्कि उसे चिंता है  चीन पाकिस्तान की धुरी की। पाकिस्तान और चीन के रिश्ते कोई नये नहीं हैं,  लेकिन पिछले दिनों लगभग 2 वर्षों से और चीन के संबंधों में तनाव आ गए हैं और यही चिंता का विषय है।1970 के बाद पहली बार भारत चीन से सशस्त्र संघर्ष  की संभावनाओं को लेकर  चिंतित है । भारत द्वारा चीन के साथ डीआरडीओ से इनकार और उसे अनदेखा करते हुए अमेरिका से समझौता हस्ताक्षरित किया साथ ही डोकलाम में जाना तानी हो गई। इससे चीन सीधा-सीधा भारत का दुश्मन हो गया ।आर्थिक सम्पन्नता के  बाद चीन ना केवल हथियारों के मामले में आत्मनिर्भर हो गया बल्कि वह  दुनिया का  पांचवा सबसे बड़ा शस्त्र निर्यातक देश बन गया है। इसका शस्त्र निर्यात लगभग 38प्रतिशत बढ़ा है पिछले 5 वर्षों में। यही नहीं भारत के आसपास के देश चीनी हथियारों के प्रमुख  आयातक हैं , इससे भारत का सिर दर्द और बढ़ गया है। पाकिस्तान तो चीन का सबसे बड़ा शस्त्र आयातक है। बांग्लादेश और  म्यांमार भी  शामिल है। इस तरह से अपने हथियारों के निर्यात के बल पर  भारत के चारों तरफ के देश पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार इत्यादि से चीन संबंध मजबूत करता जा रहा है और भारत को घेरता सा जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय आंकड़े बताते हैं कि भारत दुनिया के किसी भी देश से हथियार आयात में पीछे नहीं है लेकिन वह देश के लिए शांति और सुरक्षा नहीं हासिल कर पा रहा है। पश्चिम एशियाई देश इस समय दुनिया के सबसे शांत और सुरक्षित  देश हैं। विशेषकर सऊदी अरब वर्तमान में  दुनिया का सबसे सुरक्षित राष्ट्र है।

    जब कोई देश हथियार खरीदने लगता है तो संभवतः वह खुद को असुरक्षित महसूस करने लगता है। हथियारों के ज्यादा खरीद अंतर्राष्ट्री शांति और सुरक्षा पर प्रभाव डालती है और चिंता का विषय बन जाती है । एक सुरक्षित राष्ट्र वही है जो ना केवल यह जानता है कि उसकी सेना कितनी ताकतवर है बल्कि उसे यह भी मालूम  हो कि उसके दुश्मन कितने शक्तिशाली हैं । अच्छी विदेश नीति वही है जो देश के लिए सुरक्षा मुहैया करा सके। भारतीय सेना पिछले कुछ दिनों से असुरक्षित महसूस कर रही है। असुरक्षा का यह भाव इसलिए नहीं है कि वह कम हथियार खरीद रही है बल्कि देश के चारों तरफ मंड़रा  रहे खतरे हैं। भारत को  दो तरफा खतरा है एक तो हमले का और दूसरा उसे अपने चारों तरफ कोई दोस्त नहीं दिखाई पड़  रहा है। असुरक्षा का यह एहसास हथियारों का अभाव नहीं है बल्कि  विदेश नीति की असफलता है और इसके  लिए  मोदी सरकार के  अलावा किसे जिम्मेदार बनाया जा सकता है।

 

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