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Wednesday, March 7, 2018

हमारे देश के मतदाता क्या सोच रहे हैं

हमारे देश के मतदाता क्या सोच रहे हैं

हमारे देश में हर चुनाव चाहे वह बड़ा हो चाहे छोटा उसका एक विषय होता है, उसके लिए कुछ संदेश होते  हैं । पूर्वोत्तर भारत में भाजपा का विकास  भी एक संदेश देता है। इस संदेश के मायने भाजपा के विकास और कांग्रेस तथा वामदलों के पराभव से कुछ ज्यादा है। पिछले कई चुनावों में हमारे देश के मतदाता राजनीतिक दलों को कई विशेष संदेश देते रहे हैं। इस वर्ष लगता है ये दल-  विशेषकर सत्तारूढ़ दल- उस संदेश को समझ नहीं पा रहे हैं। अगर उस संदेश को समझा नहीं गया और उसे अमल में नहीं लाया गया तो आने वाले राष्ट्रीय चुनाव में बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है। 

  सत्तारूढ़ दल के नेताओं का  यह बहरापन कई विशेष परिवर्तनों को जन्म देगा। आपने गौर किया होगा कि 2014  के चुनाव  में जनता खुशहाली चाहती थी। मोदी जी ने इस संदेश को भली-भांति समझा और अच्छे दिन का नारा दिया। उस नारे को  ध्यान में रखकर वोट डाले गए। आम जनता भले ही समृद्धि का मतलब ना समझे या कहें की परिभाषा ना दे सके लेकिन वह इसे महसूस जरूर करती है। हमारे देश की सबसे बड़ी  ट्रेजेडी है कि 1947 से अब तक  केवल समस्याओं पर बात होती रही है। वे नहीं समझ पाए हैं कि खुशहाली लाएं कैसे? उन्हें पहले यह समझना पड़ेगा आम भारतीय गरीब क्यों है? जब तक यह नहीं समझेंगे तब तक देश को खुशहाली के मार्ग पर नहीं लाया जा सकता। हमारी सरकार  खुशहाली का मतलब  यह समझती है की जनता को सरकारी योजनाओं पर ज्यादा निर्भर बनाना। आर्थिक आजादी प्रदान करना नहीं। ताकि जनता खुद ब खुद खुशहाली के रास्ते पर आगे बढ़ सके। इसके लिए सरकार को छोटे उत्पादक वर्गों से टैक्स लेना पड़ता है और इसके फलस्वरूप एक तरह से समृद्धि विरोधी तंत्र का निर्माण हो जाता है।  इसका निर्माण कांग्रेस ने किया और  अब विभिनन सरकारों  द्वारा , चाहे वह केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार। इसे समझना जरूरी है कि केवल लोक कल्याण से खुशहाली नहीं  लाई जा सकती। यहां तक कि राजनीतिक पार्टियों और उनके नेताओं ने भी समृद्धि विरोधी  तंत्र को प्रोत्साहित किया है। वोटरों के लिए जरूरी है कि वह उस तंत्र को खत्म करें। उम्मीद और हकीकत के बीच की दूरी राजनीतिक पार्टियों को नुकसान पहुंचा सकती है।

    जो चुनाव समझते हैं उन्होंने पाया होगा  की वोटों की हिस्सेदारी में काफी अंतर आने लगा है और इसमें भारी अस्थिरता भी।  2014 में  भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय वोट शेयर में काफी वृद्धि हुई और यह वृद्धि बहुत तेज थी। साथ ही, कांग्रेस के वोटों में भारी गिरावट आई।  यह उतना ही महत्वपूर्ण है। फिर राजस्थान में कांग्रेस के वोटों में वृद्धि। यह  स्पष्ट संकेत है  कि जनता वर्तमान स्थिति पर नाखुश है और उसे सकारात्मक परिवर्तन की उम्मीद है। हर चुनाव अपनी तरह का नया होता है और इसमें आर्थिक प्रदर्शन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। जनता नए वादों को एक मौका दे सकती है लेकिन यदि वायदे पूरे नहीं किए गए तो वह उसके निष्कासन के बारे में भी सोच सकती है।  इसलिए  यह भाजपा  के लिए एक संकेत है और वह संकेत चेतावनी भरा है। क्योंकि कई राज्यों में और केंद्र में उसी की सरकार है। देश में खुशहाली लाने का कोई शॉर्टकट नहीं है इस मामले में भाजपा का रिकॉर्ड सबसे खराब रहा है।

    यदि सरकार या राजनीतिक पार्टियां  जो सत्ता में है वह जनता को खुशहाल नहीं बना सकती   या बना पा रही है  तो जनता  भी अन्य विकल्पों को देखने के लिए  तैयार है। गौर करें त्रिपुरा की भाजपा उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश या  राजस्थान की भाजपा नहीं थी यह एक तरह से त्रिपुरा में भाजपा का राजनीतिक स्टार्टअप था। उसने बड़े चमत्कारी ढंग से ईसाई और आदिवासी मतदाताओं को अपना निशाना बनाया। उसने अपने संदेश में कई बदलाव लाए। जनता तक संदेश पहुंचाने के लिए पार्टी ने  टेक्नोलॉजी और मजबूत संगठन का भरपूर प्रयोग किया। भाजपा ने एक मुरझाई हुई और पुराने तौर तरीकों वाली सरकार को हराने में कामयाबी हासिल की। भाजपा द्वारा उन राजनीतिक दलों का मुकाबला करना एक तरह से स्टार्टअप ही है। राजनीतिक स्टार्टअप के लिए एकदम नए विचारों का होना जरूरी है। नकि पुरानी चीजों को दोहराना। रजनीकांत और कमल हसन द्वारा नई पार्टियां खड़ी किए जाने से दक्षिण भारत में एक नई शुरुआत हो चुकी है। 

    हमारे देश की हकीकत यह है की पुरानी कांग्रेस और नई भाजपा की आर्थिक नीतियों में अंतर नहीं है। आज भी कई असफल नीतियों पर काम हो रहा है। सरकार को यह समझना जरूरी है आजादी भेद भाव हीनता, हस्तक्षेप मुक्ति और कम सरकार खुशहाली का जरिया है और उसकी जरूरत है।  

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